नई दिल्ली। पिछले कुछ महीनों से लगातार व्यक्ति के निजता का अधिकार को लेकर बहस हो रही है। लोगों का और सरकार का मत इसपर अलग-अलग रहा है। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दिये अपने हलफनामे में निजता को मौलिक अधिकार मानने से इंकार कर दिया। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया है कि निजता का अधिकार को आर्टिकल 21 के तहत मौलिक अधिकार ही माना जाएगा। कोर्ट के इस फैसले के बाद सरकार को आधार आधारित योजनाओं को लेकर थोड़ी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है।
आधार को लेकर शुरू से ही एक्सपर्ट्स का मानना है कि यह किसी व्यक्ति के निजी अधिकार में सेंध लगाता है। कोर्ट में आधार को अनिवार्य करने के सरकार के फैसले के खिलाफ कई बार याचिका दायर की जा चुकी है। सुनवाई के दौरान सरकार की तरफ से दलील दी गयी कि डिजिटल वर्ल्ड में लोग अपनी जानकारियां थर्ड पार्टी वेबसाइट्स जैसे फेसबुक और गूगल को देती है। हालांकि कोर्ट के फैसले के बाद भी कई ऐसी जगह इसे पूरी तरह परिभाषित करना मुश्किल है।
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वहीं कोर्ट के फैसले पर पूर्व गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने कहा है, ‘आधार बनाने के लिए जानकारी देना यह बड़ा मुद्दा नहीं है। सरकार आईडेंटिटी के लिए ऐसी जानकारियां रख सकती है। सबसे बड़ा मुद्दा ये था कि आधार को दूसरी जरूरी सर्विस के लिए अनिवार्य किया जा रहा है। यहां तक कि आने वाले समय में मोबाइल नंबर लेने या रेलवे टिकट के लिए भी आधार की जरूत होगी। यही सबसे बड़ी समस्या है कि आधार डीटेल्स किसी प्राइवेट कंपनी को क्यों दी जाए।’
कोर्ट के फैसले के बाद अब सरकार किसी भी शख्स के निजी एकाउंट में जाकर जानकारियां एकत्रित नहींं कर सकेगी। क्योंकि इसी का उपयोग कर सरकार आईटी एक्ट के सेक्शन 66ए के तहत किसी व्यक्ति द्वारा अपनी सोच अपने सोशल अकाउंट पर डालने के बाद यदि सरकार को इसमें कुछ गलत दिखता है, तो सरकार उस शख्स के खिलाफ कार्रवाई करती थी। ऐसे में अब आर्टिकल 377 और सेक्शन 66ए पर इस फैसले का असर पड़ेगा।
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हालांकि आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले में फिलहाल आधार पर किसी भी प्रकार की कोई टिप्पणी नहीं की गई है। अब आने वाले समय में सरकार तय कर सकती है कि आधार का उपयोग कहां-कहां अनिवार्य होगा। लेकिन कोर्ट के फैसले के बाद यदि अब किसी व्यक्ति की जानकारी सरकारी मशीनरी द्वारा लीक होती है तो सरकार इसके लिए जवाबदेह होगी।
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