परछाइयों में भी जैसे कोई चेहरा रहता है
ख़ामोशियों में भी कुछ शोर रहता है
अब तो न तू है न वो वक्त है
फिर भी, गुज़रे वक़्त का इंतजार रहता है
कोशिशें हज़ार बार कीं ख़ुद को समझाने की
दिल फिर न तुझसे लगाने की
बीते लम्हों की यादें मिटाने की
फिर भी न जाने क्यों आज भी तेरा ही इंतजार रहता है
तू ऐसे शामिल है मुझमें ऐसे
तेरे साथ बिताए हर लम्हों में जैसे
हर दिन होता था तीज-त्यौहार
अब तो फीका सा लगता है सावन की भी ये बौछार
अब न मैं तुझमें शामिल हूं
तो न अब कोई सपना है
और न ही पहले सा तू अपना है
फिर भी क्यों है ये इंतजार
अब भी दिल की इस दिवाली में
जज़्बातों की रोज़ ही जलती होली
न जानें अब भी कैसी ये ख्वाहिश है
तुझसे मिलने की और तुझमें सिमट जाने की
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