इंद्रधनुषी सतरंगी
झिलमिल हो नभ पंथ
कनक थाल में मेघ सजा हो
हो जीवन उद्गार प्रिय।
सुरमई शाम
आँगन में दीप
नूपुर की रुनझुन से ,
हो जीवन उद्गार प्रिय।
अंतर्मन भर पुलक
अरुण का सूर्य कलश
पाँव में महावर हो , हो जीवन उद्गार प्रिय।
अलि गूँजित मधुवन
सुधि से सुरभित स्नेह
स्पंदन ले अंक में ,
हो जीवन उद्गार प्रिय।
चिर अनमोल बंधन
प्रेम की परिधि
सागर की मोती सा, हो जीवन उद्गार प्रिय।
अंबर में विद्युत
उर में है बादल
साँसों के सौरभ-सा,
हो जीवन उद्गार प्रिय।
मधुरता अलक्षित
स्वर्ग सा श्रृंगार
संगीत की झंकार से
हो जीवन उद्गार प्रिय।
पवन हौले मृदुल पावस का पलक डोल
तारों की चाँदनी-सा,
हो जीवन उद्गार प्रिय।
बबिता सिंह, हाजीपुर, वैशाली, बिहार
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