भीड़ से भरी जिंदगी: नहीं पता था कि जिंदगी यूं एक दिन बिना किसी युद्ध के ही घरों में कैद हो जाएगी। बात बस कुछ दिन पुरानी है, जब मैंने या फिर आप में से किसी ने कोरोना वायरस जैसा कोई शब्द ही नहीं सुना था। तब मैं जब भी सड़क पर चलती और भीड़ को देखती तो ये बात अक्सर मन में आती कि क्या कभी इस भीड़ से निजात मिलेगी?
बस जब भी मैं उस भीड़ भरी सड़क को पार करती और मन में एक ख्याल आता कि लोग न दिन देखते और न ही रात बस अपने मंजिल को पाने के लिए अपने-अपने घरों से निकल पड़ते हैं। उन्हें ये भी नहीं मालूम होता कि आखिर उन्हें ये मंजिल किस राह पर मिलेगी और कब मिलेगी? बस लोग इस रस्ते के सहारे अपने जीवन के रास्ते को तय करने के लिए निकल पडते हैं…
कुछ ऐसा ही दृश्य मेरे मन में आता था जब में बीच सड़क पर खड़े होकर पैदल सड़क पर चलते लोग, या फिर उन भीड़ से भरी सड़कों पर लोगों को बस, ऑटो, या रिक्शा का इंतजार करते देखती। कभी-कभी मेट्रो से कहीं जाती तो फिर इसी भीड़ को मेट्रो ब्रिज से नीचे की तरफ देखती और फिर ऊपर मेट्रो को गुजरते देखती। बस ये सोचती कि इतने सारे लोग? कब ऐसा होगा कि ये भीड़ एक साथ अपने सफर और जिदंगी के रास्ते को तय करने के लिए एक साथ रूकेगी?
आज वही बात एक बार अचानक याद आई जब एक वायरस, जिसको हम देख नहीं सकते उसकी वजह से 130 करोड़ भारतवासी समेत पूरे दुनिया की भीड़ एक साथ खौफ से डर से अपने घरों में कैद है। एक ऐसा वायरस जिसकी कल्पना न हमारे विज्ञान में कभी थी और न ही हमारे वैज्ञानिक के पास इसके लिए कोई दवाई जैसा उपचार था। इस वायरस से बचने का सिर्फ बस एक यही रास्ता होगा कि उन भीड़ भरी सड़कोंं से सबको एक ही बार में अपने घरों में कैद होने पर मजबूर होना पड़ेगा।
अब जब लॉकडाउन हटेगा और फिर से भारतीय जनजीवन अपने जीवन के रास्ते को तय करने के लिए जिंदगी के रेलरूपी पटरी पर आएगी तब हमारी जिदंगी दो हिस्सों में बंट चुकी होगी। एक कोरोना से पहले और एक कोरोना के बाद। क्योंकि हममें से न जानें कितने लोग इस भयवाह संकट से पहले अपने भविष्य के बारे में सोचने के आदि थे।
भले ही यह कोरोना वायरस का काल का गुजर जाएगा, लेकिन जिंदगी में कई ऐसे यादें रह जाएंगी और उन्हीं यादों के साथ जिंदगी चलेगी। कोरोना ने जीवन को बहुत कुछ सिखाया है, जिसके बारे में हमने कभी कल्पना भी नहीं की थी।
‘भीड़ से भरी जिंदगी’ ✍ – पुष्पांजलि
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