अस्थि विसर्जन: देशभर में कोरोना का कहर जारी है राज्य और केंद्र सरकार के लाख प्रयासों के बावजूद कोरोना का कहर थमने का नाम नहीं ले रहा है। इस कोरोना वायरस से जंग लड़ते-लड़ते देशभर में अब तक करीब 1900 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। वहीं इस वायरस के चलते जिन लोगों की मौतें हुई हैं, आज वक्त ऐसा आ गया है कि लोगों की लाशें भी उनके ही परिजन जलाने से ड़र रहें हैं।
लेकिन हिंदू धर्म के संस्कृति के अनुसार जब तक मृतकों की अस्थियों को गंगा में प्रवाहित नहीं किया जाता है, तब तक उन्हें मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती है। हिन्दू धर्म की संस्कृति के हिसाब से अंतिम संस्कार को ही अस्थि विसर्जन कहा गया है। तो इए जानते हैं कि गंगा में ही क्यों किया जाता है अस्थि विसर्जन?
मृत आत्मा को होती है शांति की प्राप्ति
एक पौराणिक कथा के अनुसार, गंगा को सबसे पवित्र नदी माना गया है। हिंदू धर्म में गंगा का स्थान इसलिए भी सर्वोच्च माना जाता है क्योंकि देवी गंगा भगवान शिव की जटाओं में वास करते हुए धरती पर अवतरित हुई थी। मरने के बाद मानव शरीर को अग्नि के हवाले किया जाता है। जिसके बाद मानव शरीर राख हो जाता है। इसी राख को अस्थियां कहा जाता है। माना जाता है कि अस्थियों को गंगा में विसर्जित करने से आत्मा को शांति मिलती है और व्यक्ति की आत्मा नए शरीर को आसानी से ग्रहण कर लेती है।
स्वर्ग में होती है इनकी पूजा
हिन्दू शास्त्र के मुताबिक, जिस जीव की अस्थियां जितने समय तक गंगा में रहती है, उस जीव को उतने समय तक गंगा में पूजा जाता है। शास्त्रों में गंगा को प्राणदायनि भी कहा गया है। इसलिए गंगा को सर्वश्रेष्ठ तीर्थ भी कहा जाता है। इतना ही नहीं, गंगा सिर्फ बहती हुई नदी ही नही, गंगा को मां का दर्जा भी प्राप्त है और मां कभी अपने बच्चों के साथ गलत नहीं करती। इसलिए कहा जाता है कि गंगा में आने वाले सभी जीव चाहे वह दैत्य ही क्यों न हो, यहां आने के बाद सभी को मोक्ष की प्राप्ति होती है। किसी भी व्यक्ति की अस्थियों को पतित पावनी गंगा में विर्जित करने से वह व्यक्ति स्वर्ग लोक में भी पूजनीय हो जाता है।
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