नई दिल्ली। आज मस्जिद विध्वंस के 25 साल पूरे हो गए हैं, फ़िलहाल सप्रीम कोर्ट में भूमि विवाद के तौर पर इस मामले में सुनवाई चल रही है। हर साल 6 दिसंबर को अयोध्या समेत पूरे उत्तर-प्रदेश में माहोल गर्म रहता है, जिसे देखते हुए आज फिर से पूरे राज्य में सुरक्षा-व्यवस्था के कड़े इंतज़ाम किए गए हैं।
हालांकि 6 दिसम्बर के बाद देखें तो भारतीय राजनीति में काफी बदलाव आ गया है। सन 1947 में भारत अंग्रेज़ों के चंगुल से आज़ाद तो हुआ लेकिन जिस पृष्ठभूमि में देश का बंटवारा हुआ वह हिंदु-मुस्लिम मुद्दा आगे भी कई सालों तक सांस लेता रहा। वहीं साल 1992 ने जाते-जाते एक बार फिर से हिंदु-मुस्लिम मुद्दे को नई जान दे दी और इस बार उसे राम के नाम पर उभारा गया।
6 दिसम्बर 1992 के बाद से देखा जाए तो अयोध्या बीजेपी का गढ़ बन गया। साल 1993, 1996, 2002 और 2007 में लागातार बीजेपी के लल्लू सिंह यहां से विधायक चुने गये। इतना ही नहीं साल 2014 में लल्लू सिंह फैजाबाद से लोकसभा सांसद चुने गए। बता दें कि अभी हाल ही में फ़ैज़ाबाद का नाम बदलकर अयोध्या किया गया है।
हालांकि इस दौरान साल 2012 में एसपी प्रत्याशी तेज नारायण पाण्डेय उर्फ पवन पाण्डेय ने लल्लू सिंह को पराजित किया था लेकिन साल 2016 में एक बार फिर से बीजेपी प्रत्याशी वेद प्रकाश गुप्ता ने पवन पाण्डेय को हरा कर बीजेपी की वापसी कराई। आंकड़ों से काफी हद तक साफ़ होता है कि 26 दिसंबर 1992 की इस घटना ने अब तक अयोध्या में बैकफ़ुट पर रहने वाली पार्टी को फ्रंटफ़ुट पर ला खड़ा किया।
आइए एक नज़र डालते हैं बीजेपी के सफर पर
26 दिसंबर 1992 की घटना को देखते हुए साल 1993 में पार्टी की कमान एक बार फिर लालकृष्ण आडवाणी के हाथ में दी गई और 1996 लोकसभा चुनाव में बीजेपी 163 सीट जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। बाद में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में देश में बीजेपी की सरकार बनी, हालांकि बहुमत नहीं होने की वजह से महज़ 13 दिनों में बीजेपी की सकार गिर गई। जिसके बाद 1998 के आम चुनाव में बीजेपी एक बार फिर से 183 सीट के साथ सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी।
अटल बिहारी वाजपेयी दोबारा से देश के प्रधानमंत्री बने। हालांकि पूरा बहुमत नहीं होने की वजह से एक बार फिर बीजेपी की सरकार गिर गई और 1999 में फिर से लोकसभा चुनाव हुआ। इस बार अटल बिहारी वाजपेयी देश के पीएम बने और अपना कार्यकाल पूरा किया। 2004 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने राम के बजाए इंडिया शाइनिंग का नारा दिया जिसके बाद पार्टी को हार का सामना करना पड़ा।
हालांकि हार के बावजूद बीजेपी को 144 सीटें मिलीं। 2004 में कांग्रेस ने डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व में गठबंधन की सरकार बनाई। 2005 में पार्टी की कमान राजनाथ सिंह को दी गई लेकिन इसके बावजूद 2009 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी 119 संसदीय सीटों पर ही सिमटकर रह गई।
2009 लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद 2010-13 के बीच नितिन गडकरी ने पार्टी की कमान संभाली। हालांकि 2013 में लोकसभा चुनाव से एक साल पहले राजनाथ सिंह को फिर से पार्टी का अध्यक्ष बनाया गया। इस बार बीजेपी ने नरेंद्र मोदी के नाम पर चुनाव लड़ा और केंद्र में पहली बार बीजेपी की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी।
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