स्वामी विवेकानंद के अनमोल विचार – 12 जनवरी को पूरा देश स्वामी विवेकानंद की 158वीं जयंती मना रहा है। इसे राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। स्वामी विवेकानंद के बचपन का नाम नरेंद्रनाथ दत्त था जो बाद में विवेकानंद से प्रसिद्ध हुए। उनकी माता का नाम भुवनेश्वरी देवी और पिता का नाम विश्वनाथ दत्त था। उनका जन्म 12 जनवरी 1863 को बंगाल के कलकत्ता में हुआ था।
स्वामी विवेकानंद ने जीवनभर अपनी संस्कृति और भारत देश के स्नेह और प्रेम किया। उनका जीवन मनुष्य निर्माण के लिए संमर्पित था। 11 सितंबर 1893 को अमेरिका के शिकागो में उन्होंने विश्व धर्म महासभा में अपना व्याख्यान देकर भारत का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया।
स्वामी विवेकानंद के अनमोल विचार
1- उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति ना हो जाये।
2- खुद को कमजोर समझना सबसे बड़ा पाप है।
3- सत्य को हजार तरीकों से बताया जा सकता है, फिर भी वह एक सत्य ही होगा।
4- बाहरी स्वभाव केवल अंदरूनी स्वभाव का बड़ा रूप है।
5- विश्व एक विशाल व्यायामशाला है जहाँ हम खुद को मजबूत बनाने के लिए आते हैं।
6- दिल और दिमाग के टकराव में दिल की सुनो।
7- शक्ति जीवन है, निर्बलता मृत्यु है। विस्तार जीवन है, संकुचन मृत्यु है। प्रेम जीवन है, द्वेष मृत्यु है।
8- जब तक जीना, तब तक सीखना – अनुभव ही जगत में सर्वश्रेष्ठ शिक्षक है।
9- जब तक आप खुद पर विश्वास नहीं करते तब तक आप भागवान पर विश्वास नहीं कर सकते।
10- चिंतन करो, चिंता नहीं, नए विचारों को जन्म दो।
11- जो कुछ भी तुमको कमजोर बनाता है – शारीरिक, बौद्धिक या मानसिक उसे जहर की तरह त्याग दो।
12- हम जो बोते हैं वो काटते हैं। हम स्वयं अपने भाग्य के निर्माता हैं।
13- जब लोग तुम्हें गाली दें तो तुम उन्हें आशीर्वाद दो। सोचो, तुम्हारे झूठे दंभ को बाहर निकालकर वो तुम्हारी कितनी मदद कर रहे हैं।
14- तुम फुटबॉल के जरिये स्वर्ग के ज्यादा निकट होगे, बजाय गीता का अध्ययन करने के।
15- कुछ मत पूछो, बदले में कुछ मत मांगो। जो देना है वो दो, वो तुम तक वापस आएगा, पर उसके बारे में अभी मत सोचो।
16- हर काम को तीन अवस्थाओं से गुजरना होता है – उपहास, विरोध और स्वीकृति।
17- वह नास्तिक है, जो अपने आप में विश्वास नहीं रखता।
18- जो अग्नि हमें गर्मी देती है, हमें नष्ट भी कर सकती है। यह अग्नि का दोष नहीं है।
19- अनुभव ही आपका सर्वोत्तम शिक्षक है। जब तक जीवन है, सीखते रहो।
20- भय और अपूर्ण वासना ही समस्त दुःखों का मूल है।
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