नैतिकता का पाठ दुष्कर्म की मानसिकता को खत्म कर सकता है?

नैतिकता का पाठ
नैतिकता का पाठ

नई दिल्ली। साल 2012 में राजधानी दिल्ली में हुए निर्भया गैंगरेप कांड में करीब सात साल के बाद इंसाफ हुआ है। तिहाड़ जेल के फांसी घर में शुक्रवार सुबह ठीक 5.30 बजे निर्भया के चारों दोषियों को फांसी दी गई। फांसी मिलते ही तिहाड़ जेल के बाहर लोग काफी खुश नज़र आए। लोगों ने लड्डू भी बांटे।

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तिहाड़ जेल के फांसी घर में शुक्रवार सुबह ठीक 5.30 बजे निर्भया के चारों दोषियों को फांसी दी गई। निर्भया के चारों दोषियों विनय, अक्षय, मुकेश और पवन गुप्ता को एक साथ फांसी के फंदे पर लटकाया गया। पूरा देश इस बात से ख़ुश है कि निर्भया को न्याय मिल गया। निर्भया के माता-पिता को अपनी बिटिया के लिए इंसाफ मिला।

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निर्भया के दोषियों को उनके द्वारा किये गए जघन्य अपराध के लिए फांसी की सज़ा आखिरकार मिल ही गई, लेकिन क्या बलात्कारी सोच इस समाज से हमेशा के लिए चली गई? इन दोषियों को मिली फांसी की सज़ा से ऐसी नीच मानसिकता वाले लोगों में डर ज़रूर पैदा होगा। फांसी की सजा से दोषियों की मृत्यु हो जाएगी, लेकिन क्या उस घटिया सोच को हम समाज से उखाड़कर बाहर फेंक पाएंगे?

सभी को पता है कि देश में कानून-व्यवस्था है। महिलाओं के हितों के लिए भी ख़ास कानून बनाए गए हैं, लेकिन फिर भी लोग बलात्कार जैसी घटनाओं को अंजाम देते है, क्यों? क्या उन्हें कानून का भय नहीं है? अगर भय है तो फिर भी सारे कानून जानते हुए भी वो किसी बच्ची या महिला से बलात्कार करने के बारे में सोच कैसे लेते हैं?

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इन सभी सवालों के जवाब हमारे समाज के भीतर ही छिपे हैं। बलात्कारी सोच समाज के ही भीतर से सदियों पहले से उपजी हुई है क्योंकि समाज में बेटियों के जन्म के बाद से ही उन्हें वस्तु के तौर पर देखा जाता है। पितृसत्ता सोच ने बलात्कारी व्यवहार को बढ़ावा दिया है। साथ ही अशिक्षा ने इसको मज़बूती प्रदान की है। रूढ़िवादी परंपराओं की वजह से कई घटनाएं सामने ही नहीं आ पाती, या उन्हें दबा दिया जाता है।

NCRB की रिपोर्ट के अनुसार लगभग हर 3 मिनट में एक न एक बलात्कार होता है। यह ध्यान देने का विषय है कि यह घटिया सोच पनपती क्यों है? नैतिकता के जरिए हम इस समस्या का समाधान निकाल सकते है। अगर हर व्यक्ति अगर यह शपथ ले लेगा कि वह बलात्कार की घटनाओं को छिपाने की जगह उसका विरोध जताएंगे। पीड़िता को न्याय दिलाने में उसके साथ खड़े होंगे। माता-पिता शर्म की वजह से अपनी बच्ची को न्याय दिलाने से पीछे नहीं हटेंगे।

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पीड़िता यह ठान ले कि समाज के तानों से वजह घबरायेगी नहीं। ख़ुद से नफ़रत नहीं करेगी। जीने की इच्छा नहीं छोड़ेगी बल्कि डटकर इस बुराई का सामना करेगी। तब हम सब मिलकर इस बुराई को खत्म कर पाएंगे।

✍’सपना’

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