देश में भगवान श्रीराम को चाहने वाले करोड़ों हैं। भगवान श्रीराम को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है। राम जी की पूजा के साथ ही उनकी सीख को भी जीवन में उतारना चाहिए। इससे जीवन की दिक्कतें खत्म हो सकती हैं और मन शांत होता है।
जीवन में किसी भी प्रकार के मुश्किल हालात हो, हमें उन हालातों में हमेशा धैर्य और शांत रहकर मुकाबला करना चाहिए। अपने 14 वर्षों के वनवास में भी भगवान राम ने हमेशा ही धैर्य से काम लिया और सभी को साथ लेकर चले।
रामायण में श्रीराम के राज्याभिषेक को लेकर सभी तैयारियाँ हो गई थी। राजा दशरथ ने राम जी अयोध्या का राजा तय किया था। लेकिन राज्याभिषेक के ठीक एक दिन पहले मंथरा दासी ने राजा दशरथ की दूसरी पत्नी कैकयी को भड़का दिया।
मंथरा की बातों में आकर कैकयी माता ने राजा दशरथ से दो वचन मांगे। पहला वचन यह था कि अयोध्या का राजा राम को नहीं बल्कि भरत को बनाया जाए और दूसरा वचन श्रीराम को 14 वर्ष का वनवास मांगा गया। राजा दशरथ रघुकुल की रीत को निभाते हुए वचन निभाने के लिए मजबूर हो गए।
फिर राजा दशरथ ने यह सभी बातें श्री राम को बताई। इन बातों को जानकर भी श्रीराम ने धैर्य और शांति बनाए रखा। पिता दशरथ की पूरी बात को ध्यान से सुनने के बाद उनके वचन को पूरा करने के लिए भगवान राम वन में जाने के लिए तैयार हो गए।
जब राम जी का राज्याभिषेक होना था लेकिन रातों-रात ही हालात बदल गए। मुश्किल हालात में भी श्रीराम ने अपना धैर्य नहीं खोया और शांति बनाए रखी। श्रीराम के साथ लक्ष्मण और सीता भी वनवास गए।
श्रीराम की सीख
इस घटना से हमें यह सीख मिलती है कि हालात कभी भी बदल सकते हैं। किसी भी परिस्थिति के लिए हमें हमेशा तैयार रहना चाहिए। हमेशा सकारात्मक रहना चाहिए और मुश्किल हालात में धैर्य तथा शांति से काम लेना चाहिए। इससे जीवन में सबकुछ ठीक होता है।
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