वट सावित्री व्रत हर साल ज्येष्ठ अमावस्या को रखते हैं। वट सावित्री व्रत 30 मई को सोमवार के दिन मनाया जाएगा। इस दिन पत्नियां अपने पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं। इस दिन वटवृक्ष यानी बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है। सुहागन महिलाएं वट सावित्री व्रत की कथा सुनती और पड़ती है।
वट सावित्री व्रत की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, सावित्री राजर्षि अश्वपति की पुत्री थी। जो अपने पिता की एकमात्र संतान थी। सावित्री का विवाह सत्यवान से हुआ था। नारद जी ने सावित्री के पिता को बताया था कि सत्यवान गुणवान और धर्मात्मा है, लेकिन वह अल्पायु है। विवाह के 1 साल बाद ही उनकी मृत्यु हो जाएगी।
पिता ने सावित्री को काफी समझाया लेकिन वह नहीं मानी। उन्होंने कहा कि सत्यवान ही उनके पति हैं। वह दूसरा विवाह नहीं कर सकती। सत्यवान अपने माता-पिता के साथ वन में रहते थे। सावित्री भी उनके साथ रहने लगी। नारद जी ने सत्यवान की मृत्यु का जो समय बताया था, उससे पूर्व समय से सावित्री उपवास करने लगी। जिस दिन सत्यवान की मृत्यु का दिन निश्चित था। उस दिन वह लकड़ी काटने के लिए जंगल में जाने लगे तो सावित्री भी उनके साथ वन में गई।
सत्यवान जैसे ही पेड़ पर चढ़ने लगे वैसे ही उनके सिर में तेज दर्द होने लगा। वह वट वृक्ष के नीचे आकर सावित्री की गोद में सिर रख कर लेट गए। कुछ समय बाद सावित्री ने देखा कि यमराज यमदूतों के साथ सत्यवान के प्राण लेने आए हैं। वे सत्यवान के प्राण को लेकर जाने लगे। उनके पीछे-पीछे सावित्री भी चलने लगी।
कुछ समय बाद यमराज ने देखा कि सावित्री उनके पीछे-पीछे चली आ रही है। उन्होंने सावित्री से कहा कि सत्यवान से तुम्हारा साथ धरती तक ही था। अब तुम वापस लौट जाओ। सावित्री ने कहा कि जहां पति जाएंगे, वहां उनके साथ जाना एक पत्नी का धर्म है।
यमराज सावित्री के पतिव्रता धर्म से बहुत प्रसन्न हुए और वर मांगने को कहा सावित्री ने अपने सास-ससुर की आंखों की रोशनी वापस आने का वर मांगा। यमराज ने वह वरदान दे दिया। कुछ समय बाद यमराज ने देखा कि सावित्री अभी भी उनके पीछे चल रही है तो उन्होंने फिर एक वरदान मांगने को कहा सावित्री ने अपने ससुर का खोया राजपाट वापस मिलने का वरदान मांगा। यमराज ने भी वरदान दे दिया।
इसके बाद भी सावित्री यमराज के पीछे चलती रही। यमराज ने उनसे एक और वरदान मांगने को कहा। तब सावित्री ने सत्यवान के सौ पुत्रों की माता बनने का वरदान मांगा। अपने वचन से बंधे यमराज ने सावित्री को सौ पुत्रों की माता होने का वरदान दिया और सत्यवान के प्राण लौटा दिए और वहां से अदृश्य हो गए।
सावित्री वहां से लौटकर वट वृक्ष के पास आ गई। उन्होंने देखा कि सत्यवान पुनः जीवित हो गए। उनको यमराज ने जीवनदान दे दिया है। सावित्री के व्रत और पतिव्रता धर्म से सत्यवान को दोबारा जीवन मिल गया और उनके ससुर को खोया राजपाट भी मिल गया। वे पहले की तरह देखने भी लगे। इसके बाद से ही सुहागन महिलाएं वट सावित्री व्रत करने लगी ताकि उनके भी पति की आयु लंबी हो। उन्हें भी पुत्र सुख प्राप्त हो और उनका वैवाहिक जीवन सुखमय हो।
देश और दुनिया की ताजा खबरों के लिए बने रहें हमारे साथ। लेटेस्ट न्यूज के लिए हन्ट आई न्यूज के होमपेज पर जाएं। आप हमें फेसबुक, पर फॉलो और यूट्यूब पर सब्सक्राइब कर सकते हैं।