अभिषेक कुमार। कैल्शियम कारबाइड- दुनिया के दर्जनों देशों को अपनी गिरफ्त में ले चुके और चीन से पैदा हुए सबसे नये कोरोना वायरस की उत्पत्ति का केंद्र उसके वुहान शहर की फ्रेश फूड मार्केट को देखा जा रहा है। चीन की स्वीकारोक्ति इस पर जब आएगी, तब आएगी, अभी तो यही माना जा रहा है कि अगर कोरोना के पीछे जैविक हथियार का निर्माण और निगरानी करने वाली चीन की रहस्यमय बॉयो लैब नहीं है तो यह विषाणु असल में चीन की दूषित खाद्य परंपरा की ही देन है।
खानपान की इस नई परंपरा में इंसान सर्वभक्षी बन गया है और गंदे सी-फूड (समुद्री जीव जंतु) से लेकर चमगादड़ और सांप तक उसका भोजन हैं। ऐसी कुछ चिंताएं हमारे देश में भी इधर तब पैदा हुई, जब हाल में दिल्ली हाईकोर्ट ने एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए कहा कि फलों को पकाने के लिए कीटनाशकों और रसायनों का इस्तेमाल उन फलों का सेवन करने वालों को जहर देने जैसा है।
यह मामला फलों के राजा कहलाने वाले आम को पकाने में इस्तेमाल होने वाले कैल्शियम कारबाइड के इस्तेमाल से जुड़ा है, जिसका प्रयोग फल उत्पादक और उनके विक्रेता किसी अपराधबोध के बगैर करते रहे हैं। फल-सब्जियों को जल्द मंडी में पहुंचाने और आबादी की जरूरतों के मुताबिक फसल का उत्पादन बढ़ाने के लिए कीटनाशकों और रासायनिक खादों का इस्तेमाल हमारे देश में तब एक जरूरत के रूप में बढ़ा था, जब हरित क्रांति की मांग के चलते इनके प्रयोग की शुरुआत हुई।
लेकिन यह मामला तब एक गुनाह में तब्दील हो गया जब कई गुना ज्यादा कारोबारी फायदा उठाने के किसान, आढ़तिये और आम दुकानदार तक फल-सब्जियों में अंधाधुंध केमिकल झोंकने लगे। फलों में आम के अलावा चीकू, केला, अनार के व्यापारी कुछ वर्ष पहले तक कैल्शियम कारबाइड का सहारा ले रहे थे, लेकिन बीते कुछ वर्षो से इसका एक सस्ता चाइनीज विकल्प उन्हें खतरनाक चाइनीज पाउडर ‘एथलीन राइपनर’ के रूप में मिल गया जो कारबाइड के मुकाबले फलों को जल्दी पकाता है।
‘एथलीन राइपनर’ के पैकेट पर साफ चेतावनी अंकित होती है कि खाद्य पदार्थ के साथ पाउडर के संपर्क में आने पर इंसानी स्वास्थ्य पर जानलेवा असर डाल सकता है। इसके बावजूद किसान और आढ़तिये फलों को पकाने के लिए कारबाइड के साथ एथलीन और इथ्रेल-39 जैसे रसायनों का उपयोग करने लगे हैं।
पानी के संपर्क में आते ही इन रसायनों से एथिलीन गैस निकलती है, जो फलों को तेजी से पका देती है। कारबाइड या चाइनीज पुड़िया को पेटी या डलिया में फलों के बीच रात भर रखने से फल सुबह तक पककर तैयार हो जाते हैं। कारबाइड से पके फलों के ऊपर पाउडर सा नजर आता है। लेकिन फलों के ऊपर प्राकृतिक पाउडर भी मौजूद होता है। इसलिए केवल पाउडर देखकर यह कहना मुश्किल है कि फल कारबाइड से पकाया गया है। इसकी पुष्टि केवल प्रयोगशाला में जांच के बाद ही हो सकती है।
ये सारे रसायन इंसानी सेहत पर कैसा असर डालते हैं, इसका अनुमान खुद एफएसएसएआई ने लगाया है। एफएसएसएआई के अनुसार, कैल्शियम कारबाइड में आर्सेनिक व फॉस्फोरस होते हैं। पानी के संपर्क में आने पर इससे एसीटिलीन गैस (जिसे आमतौर पर कारबाइड कहते हैं) निकलती है। कैल्शियम कारबाइड में कैंसरकारी तत्व होते हैं। इससे नाड़ी तंत्र प्रभावित हो सकता है। इस कारण सिरदर्द, चक्कर आना, दिमागी विकार, अत्यधिक नींद आना, मानसिक उलझन, याददाश्त कम होना, दिमागी सूजन व मिर्गी की शिकायत हो सकती है।
एथलीन और इथ्रेल-39 जैसे रसायन भी फल-सब्जियों के सेवन के साथ हमारे शरीर में चले जाते हैं और पाचन तंत्र के जरिए खून में शामिल हो जाते हैं। इनके असर से त्वचा रोग, पाचन, मस्तिष्क और और सन तंत्र की बीमारियां पैदा हो जाती है। शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम होने लगती है।
मुद्दा यह भी है कि आम लोग इनके इस्तेमाल से क्यों नहीं बच पाते हैं? इसकी कई वजहें हैं। केमिकल वाली सब्जियां ज्यादा पैदावार के कारण सस्ती होती हैं, ज्यादा चमकदार और साफ-सुथरी दिखती हैं, सामान्य फसल के पहले बाजार में दिखने लगती हैं और सबसे अहम यह कि आम नागरिक इस बारे में कम ही जागरूक है कि उसे ऑर्गेनिक फल-सब्जियों को अहमियत देनी चाहिए।
जानलेवा कीटनाशकों की रोकथाम के लिए कायदे-कानून हैं, पर नियमों की फिक्र देश में फिलहाल कोई नहीं कर रहा है। ज्यादा बड़ी विडंबना यह है कि देश में हरित क्रांति का झंडा लहराने वालों ने हमारे खेतों और उत्पादों को विषैले रसायनों का गुलाम बना दिया है। इन दिनों देश में कई जगहों पर बगैर रासायनिक दवा और खाद के ऑर्गेनिक फसल उगाने का प्रचलन बढ़ा है, लेकिन यह सिर्फ फैशन भर है।



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