मनुष्य का पुनर्जन्म क्यों होता है? किस कारण से मनुष्य का पुनर्जन्म होता है? इसको लेकर भगवान श्री कृष्ण ने श्रीमद्भागवत गीता में कई अनमोल बातें कही है। भगवान श्री कृष्ण ने गीता का यह उपदेश महाभारत युद्ध के दौरान युद्ध के मैदान में अर्जुन को दिए थे। आज भी गीता में दिए गए उपदेश उतने ही प्रासंगिक हैं और मनुष्य को जीवन जीने का सही राह दिखाने का काम करते हैं।
गीता के उपदेशों को अपने जीवन में अपने से व्यक्ति को बहुत तरक्की मिलती है। श्रीमद् भागवत गीता के उपदेशों को अपने से जीवन संवर जाता है और व्यक्ति के अंदर क्रोध और ईर्ष्या की भावना खत्म हो जाती है। आईए जानते हैं गीता के उन उपदेशों के बारे में जो यह बताता है कि मनुष्य का पुनर्जन्म किस वजह से होता है?
गीता की अनमोल बातें
गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है कि हर मनुष्य मोक्ष की कामना करता है लेकिन मनुष्य की अधूरी इच्छाओं और वासनाओं की वजह से उनका पुनर्जन्म होता है। फिर मनुष्य जीवन और मृत्यु के चक्र में फंस जाता है।
भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि अगर मनुष्य अपने इंद्रियों को अधीन में कर ले और उसके अनुसार जीवन व्यतीत करें तो वह कभी भी जीवन के विकारों और परेशानियों में नहीं फसता है और जीवन तथा मृत्यु के चक्र से मुक्ति पा लेता है।
भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है कि इस भौतिक जगत में भोग से मिलने वाला सुख बहुत ही क्षणिक होता है। स्थाई आनंद सिर्फ त्याग में ही मिलता है। श्री कृष्ण कहते हैं कि सत्संग ईश्वर की कृपा से मिलता है परंतु कुसंगति मनुष्य अपने कर्मों से प्राप्त करता है।
मनुष्य को संयम, सदाचार, स्नेह और सेवा भाव का गुण अपने अंदर विकसित करना चाहिए। यह सभी प्रकार के भाव मनुष्य के जीवन में सत्संग के बिना नहीं आते हैं।
गीता में कहा गया है कि हर मनुष्य को अपने विचारों पर हमेशा ध्यान रखना चाहिए। अपने वस्त्र बदलने की जगह मनुष्य को हृदय परिवर्तन पर ज्यादा ध्यान केंद्रित करना चाहिए। गीता के अनुसार, अपनी जवानी के दिनों में जिस व्यक्ति ने ज्यादा पाप किए हैं उन्हें बुढ़ापे में आकर उतना ही कष्ट भोगना पड़ता है।
श्रीमद् भागवत गीता के अनुसार, आनंद हमेशा मनुष्य के भीतर ही होता है परंतु मनुष्य उसे बाहरी वस्तुओं में ढूंढता है। भगवान के उपासना सिर्फ शारीरिक रूप से नहीं बल्कि मानसिक रूप से करनी चाहिए। भगवान का वंदन उन्हें प्रेम बंधन में बांधता है और जन्म तथा मृत्यु के क्षेत्र से दूर ले जाता है।
गीता के अनमोल उपदेश देते समय श्री कृष्ण ने कहा है कि हर मनुष्य को स्वयं को ईश्वर में लीन कर देना चाहिए क्योंकि ईश्वर के सिवा मनुष्य का कोई नहीं होता है। श्री कृष्ण ने भगवत गीता में कहा है कि अहिंसा परम धर्म है परंतु धर्म के लिए की गई हिंसा यथावत धर्म है।
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