1857 का सैनिक विद्रोह जिसने अंग्रेजी हुकूमत की नींव हिला कर रख दी

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पुष्पांजलि शर्मा। 29 मार्च 1857 को पश्चिम बंगाल के बैरकपुर में सैनिकों ने चर्बी वाले करतूस लेने मना कर दिया था। भारतीय सैनिक मंगल पांडे ने सार्जेट पर हमला कर उसकी हत्या कर दी। 8 अप्रेल 1857 को मंगल पांडे को फांसी दे दी गई। 34वीं देशी पैदल सेना रेंजीमेंट को भंग कर दिया गया। 10 मई को मेरठ छावनी के सैनिकों ने खुला विद्रोह किया और 1857 के विद्रोह की शुरुआत 10 मई के दिन ही हुई। भारत में अंग्रेजी शासन के स्थापना के साथ असका विरोध शुरू हो गया था।

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भारत में शायद ही ऐसा कोई साल बीता हो जब देश की जनता ने इस्ट इंडिया कंपनी और अंग्रेजों का विरोध न किया हो। परंतु ये सभी विरोध अंग्रेजों के लिए किसी खास परेशानी का कारण नहीं बन पाए। परंतु 1857 में पहली बार भारत के जनता के विभिन्न वर्गों व समूहों द्वारा अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया गया। जो विद्रोह काफी प्रभाविक था। इस प्रकार यह विद्रोह देश के बहुत बड़े भाग में फैल गया था। बहुत से इतिहासकार 1857 के विद्रोह को आधुनिक अर्थों में राष्ट्रीय नहीं मानते। उस समय तक भारत में राष्ट्रीयता की भावना विकसित नहीं हुई थी।

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विद्रोह में शामिल नेताओं का एकमात्र उद्देश्य था देश से विदेशियों को बाहर निकलाना। वे विदेशियों को बाहर कर अंग्रेजों के आगमन से पहले खंडित भारत वापस लाना चाहते थे। यह विद्रोह बिना किसी योजना के अचानक शुरू हुआ था। यह न तो राष्ट्रीय था और न तो प्रथम था और न तो स्वंत्रता संग्राम था। इस विद्रोह के कारण भारत में ईस्ट ईंडिया कंपनी का शासन समाप्त हो गया था। भारत ब्रिटिश शासन के अधीन हो गया था।

1857 की क्रांति भारतीय इतिहास की महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है। यह ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ पहला विद्रोह था जिसने एक विशाल रूप लिया था।  इस विद्रोह के पीछे सैनिकों का विद्रोह था। यही कारण है कि इसे सिपाही विद्रोह भी कहा जाता है। लेकिन बाद में यह विद्रोह सैनिकों तक ही सीमित नहीं रहा वरण इसने आम जन में विद्रोह की भावना पैदा कर दी।

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बाद में इस विद्रोह ने एक विस्तृत रूप ले लिया। कुछ लोगों ने यह भी कहा- कि ‘भारत में स्वतंत्रता की यह पहली लड़ाई थी’। प्लासी के युद्ध के पश्चात अंग्रेजों ने भारत पर राजनीतिक अधिकार स्थापित कर लिया था। भारत में अंग्रोजी साम्राज्य का विस्तार बहुत तेजी के साथ हो रहा था। साथ ही अंग्रेजों के आर्थिक शोषण की घृणित नीतियों के फलस्वरूप समाज के लगभग प्रत्येक वर्ग में अंग्रेजों के प्रति असंतोष की भावना पनप रही थी। अंतत: 1857 में यह असंतोष की भावना जन विद्रोह के रूप में उभरा। इस विद्रोह ने ब्रिटिश शासन की पैरों को हिला कर रख दिया था।

10 मई, 1857 को मेरठ में तैनात भारतीय सेना ने विद्रोह कर दिया। 11 मई को ये सेना दिल्ली पहुंची तथा मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर को भारत का सम्राट तथा अपना नेता घोषित कर दिल्ली पर अधिकार कर लिया। दिल्ली की प्रशासनिक एवं सैन्य व्यवस्था के संचालन हेतु 10 सदस्यीय परिषद का गठन किया गया जिसका नेता बख्त खां को बनाया गया।

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20 सितंबर, 1857 को दिल्ली पर अंग्रेजों का पुनः अधिकार हो गया परंतु इस संघर्ष में जॉन निकोलस की हत्या कर दी गई। हडसन ने बहादुर शाह द्वितीय को हिमायू के मकबरे से गिरफ्तार कर लिया। सम्राट बहादुरशाह के पुत्रों मिर्जाख्वाजा सुल्तान तथा मिर्ज़ा मुगल तथा पोते मिर्जा अबूबक्र को गोली मार दिया गया। सम्राट को निर्वासित कर रंगून भेज दिया गया, जहां नवंबर, 1862 में इनकी मृत्यु हो गई। बैरकपुर की घटना का समाचार सारे देश में फैल गई। देखते ही देखते विद्रोह ने अपनी चपेट में उत्तर मध्य और पश्चिमी भारत के अनेक क्षेत्र को ले लिया। हालांकि दक्षिण भारत में विद्रोह का सीमित प्रसार रहा।

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