न जानें कौन हो तुम! By Pushpanjali Sharma

कौन हो तुम

कभी-कभी तुमको सोचती हूं

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तो सब कुछ एक सपना सा लगता है

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तुम हो कि नहीं हो

अगर हो भी तो कहां हो

 

क्या कसक है तेरे मेरे दरमियां

तुम न होकर भी मुझमें हर पल हो

तू है तो सब है ये दिन ये रात

ये चांद ये तारे ये धरती और ये आकाश

 

तुम हो तो मेरे अनकहे से कुछ सपने हैं

तुम सी जुड़ी ख्वाहिशें भी सब अपने हैं

मेरी कही हर कहानी में तुम हो

न जानें फिर कहां तुम हो

 

तुम्हें याद करके जब आज आईना देखा मैनें

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आज सचमुच मेरी नजरों में मैं खुबसूरत लगी

वो आइना भी मुझसे तुम्हारे बारे में जिक्र किया

तो फिर समझ नहीं पाई कि आखिर कौन हो तुम

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