आज है देवोत्थान एकादशी, जानें इसका महत्व और पूजन की विधि

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नई दिल्ली। देव जागरण को देवोत्थान एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन देवता चार महीने की निंद्रा के बाद जागते हैं। भगवान विष्णु आषाढ़ शुक्ल एकादशी को चार महीने लिए योगनिंद्रा में चले जाते हैं। भगवान पुन: कार्तिक शुक्ल एकादशी को जागते हैं। इन चार महीनों में किसी भी प्रकार का मांगलिक कार्य वर्जित रहता है।

देवोत्थान एकादशी का अपना एक विशेष महत्व है। इस दिन उपवास रखने का विशेष महत्व है। कहा जाता है कि इस दिन उपवास रखने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। 19 नवंबर को इस बार देवोत्थान एकादशी मनाया जा रहा है।

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गन्ने का मंडप बनाएं, बीच में चौक बनाया जाता है। चौक के मध्य में भगवान विष्णु का चित्र या मूर्ति रख सकते हैं। चौक के साथ भगवान का चरण चिन्ह बनाया जाता है। जिसको बाद में ढका जाता है। भगवान को गन्ना, सिंघाडा तथा फल-मिठाई समर्पित किया जाता है। उसके बाद घी का दीपक जलाया जाता है, जो कि रातभर जलता रहता है। सुबह में भगवान के चरणों की विधिवत पूजा की जाती है। फिर चरणों को स्पर्श करके उनको जगाया जाता है। इस समय शंख-घंटा-और कीर्तन बजाया जाता है और व्रत-उपवास की कथा सुनी जाती है। इसके बाद से सारे मंगल कार्य विधिवत शुरू किए जा सकते हैं।

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देवोत्थान एकादशी के दिन इन बातों का ख्याल रखना चाहिए?

निर्जल या केवल जलीय पदार्थों पर उपवास रखना चाहिए। अगर रोगी, वृद्ध, बालक या व्यस्त व्यक्ति हैं तो केवल एक वेला का उपवास रखना चाहिए और फलाहार करना चाहिए। अगर यह संभव न हो तो इस दिन चावल और नमक नहीं खाना चाहिए। भगवान विष्णु या अपने इष्ट-देव की उपासना करें। तामसिक आहार (प्याज़, लहसुन, मांस, मदिरा, बासी भोजन) बिलकुल न खाएं। इस दिन “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करना चाहिए।

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मनचाहे विवाह के लिए क्या उपाय करें?
पीले रंग के वस्त्र धारण करें। पंचामृत बनायें, उसमें तुलसी दल मिलाएं। शालिग्राम जी को पंचामृत स्नान कराएं। मनचाहे विवाह की प्रार्थना करें। पंचामृत को प्रसाद के रूप में ग्रहण करें।

शीघ्र विवाह के लिए क्या करें उपाय?
लाल या पीले रंग के वस्त्र धारण करें। शालिग्राम को स्नान कराके उनको चन्दन लगाएं। उनको पीले रंग के आसन पर बिठाएं। फिर तुलसी को अपने हाथों से उनको समर्पित करें। प्रार्थना करें कि आपका विवाह शीघ्र हो जाए।

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वैवाहिक जीवन में बाधा आने पर ये उपाय करें?
सम्पूर्ण श्रृंगार करें, पीले वस्त्र धारण करें। शालिग्राम के साथ तुलसी का गठबंधन करें। इसके बाद हाथ में जल लेकर तुलसी की नौ बार परिक्रमा करें। बांधी हुई गांठ के साथ उस वस्त्र को अपने पास हमेशा रखें।


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