मोतिहारी। भारत कृषि प्रधान देश है। यहां 60 फीसदी से अधिक आबादी कृषि पर निर्भर है। यहां पर पढ़े लिखे युवाओं का एक ही सहारा होता है, किसान बनना। बेरोजगार तो नहीं रह सकते। तब जाहिर सी बात है कि देश की संसद में कृषि संबंधित कोई विधेयक पारित हो और किसी का ध्यान न हो, यह असंभव है। जब संसद में फार्मिंग बिल-2020 सदन के पटल पर रखा गया, तब पूरे देश के किसान एवं अन्य लोग के बीच बड़ी उत्साह दिख रही थी। लेकिन जब इस बिल में तीन संशोधन किए गए तब अचानक कहीं खुशी तो कहीं गम का माहौल बन गया।
पंजाब व हरियाणा के किसान का उत्साह गम में बदल गया। ये लोग सड़कों पर आने लगे। देश के कुछ किसान को समझ में नहीं आया कि विधेयक में क्या संशोधन हुआ है। नहीं समझने की एक बड़ी वजह शिक्षा का अभाव है।
इस सत्र में कृषि संबंधित तीन विधेयक पारित हुआ है। पहला – आवश्यक वस्तु अधिनियम-2020, दूसरा – कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य, संवर्धन एवं सुविधा विधेयक-2020 और तीसरा – मूल्य आश्वासन अनुबंध एवं कृषि सेवाएं विधेयक-2020। इससे विपक्ष में नाराजगी है और इसे किसान विरोधी बता रही है। विपक्ष का मानना है कि अब किसानों को न्यूतम समर्थन मूल्य का लाभ नहीं मिलेगा। एमएसपी प्रणाली को खत्म कर दिया जाएगा। लेकिन मोदी सरकार कह रही है कि एमएसपी को खत्म करने के बजाए सभी फसलों का न्यूतम समर्थन मूल्य को बढ़ा दिया।
हालांकि फिर भी विपक्ष सरकार का विरोध कर रही है। इतना ही नहीं एनडीए सरकार में शामिल शिरोमणि अकाली दल के प्रमुख सुखबीर सिंह ने भी इस बिल का विरोध किया है।
हद तब हो गई जब आठ सदस्य संसद के बाहर हड़ताल पर बैठ गए। इन सभी को निलम्बित भी कर दिया गया है। भाजपा के सहयोगी दल के केंद्रीय खाद्य एवं प्रसंकरण उद्योग मंत्री हरसिमरत कौर ने इस्तीफा दे दिया।
इनके इस्तीफे देने का मुख्य कारण पंजाब और हरियाणा में सबसे अधिक किसान है और वह लोग इससे नाखुश हैं। इसलिए इनकी मजबूरी बन गई। विपक्षी पार्टी इसे काला कानून भी कह रहे हैं।
क्या है आवश्यक वस्तु अधिनियम-2020
इस अधिनियम को एक अध्यादेश के द्वारा जून माह में लाया गया है। इस अधिनियम को भण्डारण नियम भी कहा जाता है। इस नियम के अन्तर्गत पहले कोई किसान या व्यापारी अनाज का भण्डारण नहीं कर सकते थे। इसे देश में कालाबाजारी रोकने के लिए लाया गया था। लेकिन अब इसमें संशोधन के बाद कोई भी किसान व व्यापारी को भंडारण करने का अनुमति दे दी गई है। सिर्फ आपदा एवं युद्ध के समय भंडारण नहीं किया जा सकता है। इसके लागू होने से देश में कालाबाजारी बढ़ने की आशंका बढ़ जाएगी।
कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य, संवर्धन विधेयक-2020
इस विधेयक में APMC अधिनियम है। पहले इसके तहत किसान अपनी उपज को सिर्फ मंडी (बाजार समिति) में बेच सकते थे। लेकिन अब किसान बाजार के बाहर भी अनाज को बेच सकते हैं। देश के किसी भी कोने में बेच सकते हैं। अब देश में एक देश, एक कृषि बाजार बनाने की पहल की गई है। किसान अनाज को ऑनलाइन बुक कर ट्रेडर्स के माध्यम से भी बिक्री कर सकेंगे। इस व्यवस्था के बाद बड़े- बड़े व्यापारियों के गोदाम बेकार हो सकते हैं। साथ ही बाजार समिति अर्थात् मंडी समाप्त हो जायेगी।
मूल्य आश्वासन अनुबंध एवं कृषि सेवाएं विधेयक-2020
इस विधेयक में कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग को रखा गया है। इसमें किसानों को खेती करने से पहले ही उनके फसलों का बाजार मूल्य के हिसाब से कंपनी के द्वारा तय कर दी जाएगी। कंपनी अपनी जरूरत के अनुसार किसानों से फसल उगाने को कहेगी या फिर समूचे गांव के फसल को कंपनी पहले ही कॉन्ट्रेक्ट कर खरीद लेगी। यदि फसल होने के बाद मूल्य बढ़ जाता है तब भी किसान को कॉन्ट्रैक्ट के मुताबिक, अपनी फसल कंपनी को ही बेचना पड़ेगा। इस स्थिति में किसानों को घाटा हो सकता है। इतना ही नहीं किसान से फसल जब कोई कंपनी मनमानी दाम में खरीदेगा तो बाद में वह बाजार में भी ज्यादा लाभ कमाने के लिए मनमानी दाम पर बेचेगा।
अब रही बात न्यूतम समर्थन मूल्य की, इसको लेकर किसान एवं विपक्षी पार्टी विरोध व प्रदर्शन कर रहे हैं। सरकार कह रही है कि इस संशोधन में एमएसपी का कोई जिक्र नहीं किया गया है। बल्कि सरकार ने फसलों के एमएसपी में वृद्धि कर दी है। फिर भी देश में हल्ला हो रहा है। बता दें कि किसी फसल का एमएसपी उसके लागत, मांग, आपूर्ति की स्थिति, मंडी- मूल्यों का रुख, अलग- अलग लागत और अंतर्राष्ट्रीय बाजार मूल्यों के आधार पर तय होती है।
देश में एमएसपी तय करने की जिम्मदारी कृषि मंत्रालय और भारत सरकार के अधीन आने वाले कृषि लागत व मूल्य आयोग (CACP) करती है। इस प्रकार कुल 23 से अधिक फसलों पर एमएसपी केंद्र सरकार देती है। सरकार का मानना है कि एमएसपी के तहत किसान से अनाज चौदह-पंद्रह रूपए से अधिक मूल्य पर खरीदती है और FCI गोदाम में स्टोर कर रखती है। फिर उसे PDS स्कीम के तहत गरीब जनता के बीच 2-4 रुपया किलो बांटती है। इससे सरकार को घाटा हो रही है। NSSO के सर्वे के अनुसार, MSP का लाभ देश के सिर्फ 6 फीसदी किसानों को ही मिलता है। वर्ष 2000-2017 तक एमएसपी के तहत सरकार को 45 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है।
✍अमृत राज
एमजेएमसी छात्र, मीडिया अध्ययन विभाग
महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, मोतिहारी, बिहार
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