नवरात्रि और नारी सम्मान

नारी सम्मान
नवरात्रि और नारी सम्मान

नवरात्रि और नारी सम्मान – हर साल शरद माह के शुरुआत में शारदीय नवरात्रि का महापर्व आता है। इस अवसर पर मातृशक्ति की अराधना के लिए हमें नौ दिन विशेष रूप से प्राप्त होते हैं। माना जाता है कि नवरात्रि मातृशक्ति की अराधना का महापर्व है। यह नारी शक्ति के आदर और सम्मान का उत्सव है। यह उत्सव नारी को अपने स्वाभिमान व अपनी शक्ति का स्मरण दिलाता है, साथ ही समाज के अन्य पुरोधाओं को भी नारी का सम्मान करने के लिए प्रेरित करता है।

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अपमान मत करना नारियों का,
इनके बल पर जग चलता है।
पुरूष जन्म लेकर तो,
इन्हीं के गोद में पलता है।।

लेकिन वर्तमान समय में नारी को सम्मान के नाम पर छला जा रहा है। आज के भौतिकवादी युग में उनकी इज्जत नहीं हो रही है। जो समाज और व्यक्ति स्त्री को इज्जत नहीं दे सकते, उनको नवरात्रि पर्व मनाने का कोई हक नहीं है। भारतीय संस्कृति में नारी को प्राचीन समय से ही पुरुषों के बराबर आदर सम्मान दिया जाता रहा है। पंरतु मध्यकाल में पुरुष अपने वर्चस्व को स्थापित करने और निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिए नारी के प्रति आदरभाव को भूल गए और उनपर अत्याचार करने लगे।

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नारी सम्मान
सुरभि सिंह, मीडिया अध्ययन विभाग, महात्मा गांधी सेंट्रल यूनिवर्सिटी, बिहार

नारी के प्रति कुछ लोगों का नकारात्मक सोच और व्यवहार आज भी बदस्तूर जारी है। अत्याचार की गूंज हमें रोजाना सुनाई और दिखाई दे रही है। स्त्री के प्रति सम्मान की ठोस शुरुआत करने की जरूरत है। सभ्य समाज कहे जाने वाले इस व्यवस्था को नारी के त्याग, समर्पण और बलिदान को लेकर जागरूक करने की आवश्यकता है। इसकी शुरुआत हमें अपने घर-परिवार से करनी पड़ेगी।

आज हम देखें तो पाते हैं कि नारी जितनी अधिक आगे बढ़ रही है, उसी रूप में उसे गुलाम बनाकर रखने का आर्कषण भी बढ़ रहा है। उसे पग-पग पर बहुत अधिक संघर्ष करना पड़ रहा है। नारी के प्रति संवेदनाओं में विस्तार होना चाहिए। जिस तरह हम नवरात्रि में मातृशक्ति के अनेक स्वरूपों का पूजन करते हैं, उनका स्मरण करते हैं, उसी प्रकार नारी के गुणों का हम सम्मान करें। हमारे घर में रहने वाली माता, पत्नी, बेटी, बहन इन सभी में हम गुण ढूंढें।

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एक नारी में जितनी इच्छाशक्ति, दृढ़ता होती है, वह पुरुष में शायद ही होती है। नारी जाति अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति के कारण ही घर, ऑफिस या सामाजिक कार्यक्षेत्र में स्वंय को स्थापित कर रही हैं। दोहरी भूमिका में वह दोनों ही स्थितियों का बेहतर निर्वाह करती हैं। कन्या का विवाह के पश्चात उसकी जिंदगी बहुत बदल जाती है। पति के कार्यों व पति के परिवार का ध्यान, पति के परिवार में यथोचित सम्मान देना, अपनी भावनाओं को एक तरफ रखकर त्याग, सर्मपण से कार्य करना उसका प्रमुख उद्देश्य बन जाता है। स्त्री का जीवन परिवार के लिए एक तपस्या, एक तप है, जो निष्काम भाव से किया जाता है।

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नारी का सबसे बड़ा जो गुण उसे भगवान ने प्रदान किया है वह है मातृत्व। एक मां अपने बच्चे के लालन-पालन और उसके अस्तित्व निर्माण में अपने पूरे जीवन की आहुति देती है। मातृत्व से ही वह अपनी संतानों में संस्कारों का बीजारोपण करती है। यह मातृत्व भाव ही व्यक्ति के अंदर पहुंचकर दया, करुणा, प्रेम आदि गुणों को जन्म देती है।

वर्तमान समय में बहुत जरूरत है नारी का सम्मान करने का, अपने बेटों को ये बताने का कि नारी की इज्जत कैसे करनी है। हमारे समाज में स्त्री के प्रति नजरिया बदलने में यह एक मील का पत्थर साबित होगा। आइए, नारी के त्याग, तपस्या और अतातायियों से संघर्ष का महापर्व नवरात्रि के अवसर पर यह संकल्प लें कि नारी का उचित सम्मान और आदर करेंगे और अन्य को ऐसा करने के लिए प्रेरित करेंगे। जयतु नारी!


✍ सुरभि सिंह
मीडिया अध्ययन विभाग
महात्मा गांधी सेंट्रल यूनिवर्सिटी, बिहार

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