भारतवर्ष में हर साल मार्गशीर्ष महीने की पूर्णिमा को भगवान दत्तात्रेय का प्राक्ट्य दिवस मनाया जाता है। पूर्णिमा के दिन भगवान दत्तात्रेय के बाल स्वरूप की पूजा की जाती है। भगवान दत्तात्रेय को भगवान विष्णु, शिव और ब्रह्मा तीनों का स्वरूप माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इन्होंने मार्गशीर्ष पूर्णिमा को ही प्रदोष काल में पृथ्वी पर अवतार लिया था।
पूर्णिमा के दिन भगवान दत्तात्रेय के बाल स्वरूप की पूजा होती है। इनकी छ: भुजाएं और तीन सिर हैं। भगवान विष्णु के 24 अवतारों में से छठे स्थान पर इनकी गणना होती है। भगवान दत्तात्रेय को महायोगी और महागुरु भी कहा जाता है। वे एक ऐसे अवतार हैं जिन्होंने अपने इस जीवन में 24 गुरुओं से शिक्षा ग्रहण की।
ऐसी मान्यता है कि भगवान दत्तात्रेय हर जगह पर व्याप्त हैं। वे पूरे जीवन ब्रह्मचारी रहे थे। वे अपने भक्तों पर किसी भी संकट की स्थित में तुरंत ही कृपा करते हैं और भक्त की रक्षा करते हैं। इनकी उपासना से व्यक्ति का अहं दूर हो जाता है और जीवन में ज्ञान का प्रकाश फैलता है।
मार्गशीर्ष पूर्णिमा पर भगवान दत्तात्रेय की पूजा कैसे करें
- सुबह जल्दी उठकर स्नान के पश्चात भगवान दत्तात्रेय की पूजा करें।
- पूजा के बाद भगवान की श्री दत्तात्रेय स्त्रोत का पाठ करना चाहिए। इससे भगवान भक्तों पर प्रसन्न होते हैं और कष्ट दूर करते हैं।
- इस दिन यदि संभव हो सके तो व्रत करना चाहिए।
- इस दिन किसी भी प्रकार की तामसिक आहार नहीं करना चाहिए।
- पूरे दिन ब्रह्मचर्य और अन्य नियमों का विधिपूर्वक पालन करना चाहिए।
- भगवान दत्तात्रेय के साथ-साथ भगवान विष्णु और भगवान शिव की भी पूजा करनी चाहिए।
भगवान दत्तात्रेय की रोचक पौराणिक कथा
एक बार देवी लक्ष्मी, पार्वती और सरस्वती को अपने पति धर्म पर अभिमान हो गया। तब नारद मुनि ने इस सभी का घमंड चूर करने के लिए देवी अनुसूया के पति धर्म का गुणगान तीनों देवियों के पास जाकर करने लगे। इससे तीनों देवियों में ईर्ष्या की भावना जाग्रत हो गई। देवियों की जिद के कारण तीनों देव, ब्रह्मा, विष्णु और महेश देवी अनुसूया के पति धर्म को भंग करने की मंशा से पहुंचे।
तब देवी अनुसूया ने अपने पति धर्म के बल पर तीनों देवों की मंशा जान ली और ऋषि अत्रि के चरणों का जल तीनों देवों पर छिड़क दिया। इससे तीनों देव बाल स्वरूप में आ गए। अपनी भूल पर पछतावा होने के बाद तीनों देवियों ने देवी अनुसूया से क्षमा मांगी। लेकिन देवी ने कहा कि इन तीनों ने मेरा दूध पिया है इसलिए इन्हें बाल स्वरूप में ही रहना होगा। तब तीनों देवों ने अपने-अपने अंश से एक नया अंश पैदा किया। इन्ही को भगवान दत्तात्रेय कहा जाता है।
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