गगन शर्मा। नये साल के भी कुछ दिन बीत गये। यह दौड़ अनादि काल से चली आ रही है, अनवरत! पर ऐसा भी नहीं है कि समय यूं ही रीतता, बीतता, खर्च हो जाता हो! या सिर्फ कैलेंडर, संवत, नाम, अंक आदि ही आते-जाते-बदलते रहते हों! इस सतत चलने वाली प्रक्रिया के साथ संसार के कुछ अनूठे प्रसंग भी जुड़ते चले जाते हैं, जिनकी जानकारी अपने आप में अनोखी है—प्रशांत महासागर में स्थित रिपब्लिक ऑफ किरीबाती नामक द्वीप को यह सौभाग्य प्राप्त है कि वहां दुनिया में सबसे पहले नववर्ष का स्वागत किया जाता है।
कहते हैं कि करीब चार हजार साल पहले मेसोपोटामिया में पहली बार नए साल का उत्सव मनाया गया था। कई देशों में अलग-अलग नववर्ष की शुरुआत मानी जाती है। पर क्रिश्चियन नववर्ष की मान्यता सबसे अधिक है और यह तकऱीबन सारे संसार में मान्य है। हमारा नया साल अंग्रेजी माह के मार्च-अप्रैल में पड़ता है। ग्रंथों के अनुसार जिस दिन सृष्टि का चक्र प्रथम बार विधाता ने परवर्तित किया, उस दिन चैत्र शुदी 1, रविवार था। उसी दिन से हमारे यहां नए साल की शुरुआत होती है।
शायद इसीलिए हमारे ऋषि-मुनियों ने किसान को भी सबसे ज्यादा सुहाते इस मौसम से काल गणना की शुरुआत की होगी। भारत में सभी शासकीय और अशासकीय कार्य तथा वित्त वर्ष भी अप्रैल (चैत्र) मास से प्रारम्भ होता है। सम्राट जूलियस सीजर ने 46 ईसा पूर्व एक जनवरी को साल का पहला दिन घोषित किया था। प्राचीन यूरोप में दो विपरीत दिशाओं के सर वाले भगवान जानुज को खुशहाली का प्रतीक माना जाता था। इन्हीं के नाम पर जनवरी माह का नामकरण किया गया था।
इथोपिया में साल में तेरह महीने होते हैं। इसलिए वहां अभी 2006 ही चल रहा है। जापान और कोरिया जैसे कुछ एशियन देशों में बच्चे के जन्म होते ही उसको एक साल का माना जाता है। नए साल पर अमेरिका के न्यूयार्क में टाइम्स स्क्वायर पर 1907 से चले आ रहे दुनिया के सबसे बड़े और महंगे नववर्ष के जश्न पर, जहां एक युगल पर कम से कम 1200 डॉलर का खर्च बैठने के बावजूद, इस ‘बॉल ड्रॉप आयोजन को देखने लाखों लोग इकट्ठा हो जाते हैं।
जबकि तकऱीबन दो करोड़ अमेरिकन इस उत्सव को अपने घरों में बैठ कर देखते हैं, जबकि संसार भर में इसमें रुचि लेने वाले तो अनगिनत हैं। अमेरिका के समोया द्वीप में सबसे आखिर में नए साल का आगाज हो पाता है। अब इस बदलती तारीखों के बारे में तो यही कहा जा सकता है कि नववर्ष अनंत, नव-वर्ष कथा अनंता!
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