आलोक पुराणिक। निवेश का विकल्प- सिप यानी सिस्टमेटिक इनवेस्टमेंट प्लान छोटे निवेशकों के लिए बहुत ठीक किस्म का निवेश का तरीका होता है। सिप में नियमित अंतराल पर निवेशक एक राशि म्यूचुअल फंड को दे देते हैं और म्यूचुअल फंड तय स्कीम में उस रकम का निवेश कर देता है। सिप को कई मामलों में अच्छी ईएमआई के तौर पर प्रचारित किया जाता है। वैसे पुराने दायित्व को निपटाने का नाम है ईएमआई।
इसके उलट सिप भविष्य की संपत्ति बनाने की तैयारी है। हाल में आये आंकड़ों से साफ होता है कि तमाम छोटे निवेशक इस तथ्य से सजग हो रहे हैं कि निवेश का सही तरीका सिप के जरिये ही सुनिश्चित किया जा सकता है। हाल में आये आंकड़ों में एसोसिएशन आफ म्यूचुअल फंड्स आफ इंडिया यानी एएमएफआई ने बताया है कि जनवरी में सिप के जरिये निवेशित राशि 8532 करोड़ रुपये पर पहुंची।
लगातार चौदहवें महीने सिप के जरिये संग्रहित राशि का स्तर 8000 करोड़ रुपये से ऊपर का रहा। तमाम म्यूचुअल फंडों की तमाम निवेश योजनाओं के जरिये तमाम म्यूचुअल फंडों के पास 28 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की परसंपत्तियां पहुंच गयी हैं। कुल मिलाकर निवेश संस्कृति में सिप का योगदान लगातार बढ़ रहा है।
समझदारी इसमें है कि बाजार के उतार-चढ़ाव से घबराये बिना ही निवेशक अपनी सिप राशि या निवेश की मासिक किस्त के भुगतान को जारी रखें। बाजार के उतार-चढ़ाव से घबराने वाले निवेशकों को अपना सारा निवेश शेयर आधारित निवेश योजनाओं में नहीं रखना चाहिए बल्कि निवेश का एक हिस्सा कर्ज प्रतिभूति आधारित निवेश योजनाओं में रखना चाहिए।
गौरतलब है कि कर्ज आधारित निवेश योजनाएं अपेक्षाकृत कम जोखिम वाली होती हैं, शेयर आधारित निवेश योजनाओं के मुकाबले। जो कर्ज लेता है, वह ब्याज देता है। ब्याज की दर तय होती है। कर्ज प्रतिभूतियों में निवेश का एक जोखिम यह हो सकता है कि कहीं ब्याज और मूलधन डूब तो ना जायेगा। पर इतनी उम्मीद म्यूचुअल फंड से की जाती है कि वह निवेश के न्यूनतम मानकों के आधार पर समग्र विश्लेषण करके उन्हीं कर्ज प्रतिभूतियों में निवेश करेगा, जहां जोखिम न्यूनतम हो और रिटर्न की संभावनाएं अधिकतम हों।
इसी रणनीति पर काम करना म्यूचुअल फंडों का उद्देश्य होता है। खालिस शेयर आधारित योजनाओं में निवेश करने वाली योजनाएं ज्यादा जोखिम लेकर आती हैं और खालिस कर्ज प्रतिभूतियों में निवेश करने वाली योजनाएं जोखिम तो कम कर देती हैं पर साथ में रिटर्न भी कम ही हो जाता है। कर्ज और शेयर आधारित योजनाओं में सम्मिलित निवेश करने वाली योजनाएं कम जोखिम पर अपेक्षाकृत ज्यादा रिटर्न देने की क्षमता रखती हैं।
अपेक्षाकृत कम जोखिमपूर्ण निवेश के इच्छुक निवेशकों के लिए बाजार में इस तरह की योजनाएं भी उपलब्ध हैं, जिनके तहत कुल निवेश का एक हिस्सा कर्ज प्रतिभूतियों में निवेशित किया जाता है और इस तरह से कुल जोखिम कम हो जाता है। ऐसी ही एक स्कीम है-डीएसपी इक्विटी एंड बांड फंड।
यह योजना डीएसपी म्यूचुअल फंड की है। यह योजना 27 मई 1999 को लांच की गयी थी। जनवरी 2020 के आंकड़ों के हिसाब से इसके पास कुल 6497 करोड़ रुपये की परसंपत्तियां थीं। इनमें से करीब 74.3 प्रतिशत हिस्सा शेयरों में निवेशित था और 24.1 प्रतिशत हिस्सा कर्ज प्रतिभूतियों में और करीब 1.6 प्रतिशत हिस्सा नकद के तौर पर था।
12 फरवरी 2020 के आंकड़ों के हिसाब से डीएसपी इक्विटी एंड बांड फंड ने एक साल में 23.75 प्रतिशत का रिटर्न दिया है। हालांकि यह रिटर्न तो बहुत ही असाधारण है पर इसके दूसरे आंकड़े बताते हैं कि तमाम अवधियों में इसके रिटर्न बेहतरीन रहे हैं। 12 फरवरी 2020 को इसने तीन सालों के हिसाब से इसने सालाना रिटर्न 10.37 प्रतिशत का दिया है।
यह भी रिटर्न बेहतरीन ही माना जायेगा। पांच सालों में इसने सालाना रिटर्न 10.15 प्रतिशत का दिया है। 7 सालों में इसका सालाना रिटर्न 13.70 प्रतिशत का रहा है। 10 सालों की लंबी अवधि में इसका सालाना रिटर्न 11.69 प्रतिशत का रहा है। इसके रिटर्न को बेहतरीन माना जा सकता है।
कुल मिलाकर अपेक्षाकृत कम जोखिम उठाकर लाभ हासिल करने के इच्छुक निवेशक इस निवेश विकल्प पर विचार कर सकते हैं और अपने निवेश योग्य संसाधनों का एक हिस्सा डीएसपी इक्विटी एंड बांड फंड में निवेशित कर सकते हैं। म्यूचुअल फंड निवेश में बाजार जोखिम रहते हैं। इसलिए निवेशक अपना अध्ययन करें या किसी वित्तीय सलाहकार की सलाह लें।
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