- सरकार की तरफ से कई मंत्रियों की अनुपस्थिति के कारण इस संशोधन विधेयक को पास कराने में विपक्ष कामयाब हो गया। मतदान के समय कांग्रेस के गुलाम नबी आजाद, दिग्विजय सिंह और बीके हरिप्रसाद ने तीसरे अनुच्छेद में संशोधन की मांग उठाई।
नई दिल्ली। राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देने की केंद्र सरकार की कोशिश एक बार फिर अटकती नजर आ रही है। सोमवार को राज्यसभा में राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग से सम्बंधित संशोधन को पारित कर दिया गया। इस संशोधन में विपक्ष ने धर्म आधारित आरक्षण की वकालत की थी। लेकिन सरकार धर्म आधारित आरक्षण के खिलाफ थी। अब फिर से इसे लोकसभा में भेजा जाएगा। लोकसभा इस विधेयक को पहले ही पारित कर चुकी है।
विपक्ष ने नियम तीन को विधेयक से हटवाने के बाद ही अपनी सहमति प्रदान की। सदन ने विपक्ष के संशोधनों के साथ विधेयक को मंजूरी दे दी। विधेयक अब वापस लोकसभा को भेजा जाएगा। 123वें संविधान संशोधन विधेयक के जरिये पिछड़े वर्ग के लिए राष्ट्रीय आयोग का गठन किया जाना है। राज्यसभा में अपनी संख्या बल के आधार पर विपक्ष ने इस विधेयक को राज्यसभा में पास करा लिया। धर्म आधारित किसी भी संशोधन का केंद्र सरकार ने विरोध किया था।
केंद्र सरकार का कहना था कि इस प्रकार के किसी भी संशोधन से आयोग कमजोर हो जाएगा और अदालत के सामने टिक नहीं पाएगा। अब एक बार फिर सरकार इस विधेयक को नए सिरे से ला सकती है। ऐसे में एक बार फिर संवैधानिक दर्जा देने की पुरानी मांग अटक सकती है। लोकसभा में विधेयक पास होने के बाद इसे प्रवर समिति की रिपोर्ट के बाद सोमवार को राज्यसभा में पेश किया गया था। विधेयक को पास कराने के लिए कुछ राज्यसभा सदस्यों (245) में एक दो-तिहाई का पक्ष विधेयक में होना चाहिए था। जो पूरा हो गया और विधेयक को पास कर दिया गया।
सरकार की तरफ से कई मंत्रियों की अनुपस्थिति के कारण इस संशोधन विधेयक को पास कराने में विपक्ष कामयाब हो गया। मतदान के समय कांग्रेस के गुलाम नबी आजाद, दिग्विजय सिंह और बीके हरिप्रसाद ने तीसरे अनुच्छेद में संशोधन की मांग उठाई। पहला संशोधन आयोग के सदस्यों की संख्या को लेकर था। विपक्ष तीन के बजाय पांच सदस्य पर जोर दे रहा था। दूसरे में राज्यों के हितों को सुरक्षित रखने की बात थी। आखिर में नियम तीन को हटाकर जब विधेयक पर वोटिंग कराई गई, तो इसके समर्थन में 124 वोट पड़े। इस प्रकार यह विधेयक राज्यसभा में पारित हो गया।
जब बिल को राज्यसभा में लाया गया तो सरकार और विपक्ष के बीच खूब जुबानी जंग हुई। संसदीय कार्य राज्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि विपक्ष चाहता है कि बिल को अदालत में चुनौती दी जा सके। गुलाम नबी आजाद ने जवाब में कहा कि सरकार पिछड़ा वर्ग आयोग को कमजोर करना चाहती है। वित्त मंत्री अरुण जेटली का तर्क था कि यह बिल अदालत में नहीं ठहर पाएगा। जदयू के शरद यादव ने कहा कि मौजूदा स्वरूप में यह बिल बेअसर साबित होगा।
गौरतलब है कि पिछडें वर्ग की पहचान और उनकी शिकायतें सुनने के लिए इस नए आयोग का गठन मोदी सरकार के सबसे बड़े एजेंडे में से एक है। इसके पारित हो जाने पर पुराने पिछड़ा वर्ग आयोग को समाप्त कर दिया जाएगा। अभी पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा प्राप्त नहीं है। यह अभी केंद्र सरकार के सामाजिक कल्याण और अधिकारिता मंत्रालय के तहत एक वैधानिक आयोग है।
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