बिहार की धार्मिक नगरी गया जी पितृपक्ष के समय लाखों श्रद्धालुओं का आस्था स्थल बन जाती है। यहां लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति और उद्धार के लिए पिंडदान करने आते हैं। गया जी में करीब 54 पिंडवेदियां मौजूद हैं, लेकिन इनमें सबसे खास और अनोखी वेदी है जनार्दन मंदिर की। यही एक ऐसा स्थान है जहां कोई व्यक्ति जीवित रहते हुए भी अपना आत्मश्राद्ध यानी खुद का पिंडदान कर सकता है।
कहां स्थित है जनार्दन मंदिर?
यह मंदिर भस्मकूट पर्वत पर मां मंगलागौरी मंदिर के उत्तर में स्थित है। मान्यता है कि भगवान विष्णु ने स्वयं इस वेदी की स्थापना की थी। कहा जाता है कि जो लोग वैराग्य धारण कर चुके हों, संतानहीन हों या फिर अपने जीवन के पाप कर्मों का प्रायश्चित करना चाहते हों, वे यहां आत्मश्राद्ध करते हैं।
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आत्मश्राद्ध की तीन दिवसीय प्रक्रिया
आत्मश्राद्ध कोई साधारण विधि नहीं है। इसकी पूरी प्रक्रिया तीन दिनों तक चलती है।
- पहला दिन: संकल्प और प्रायश्चित
- दूसरा दिन: तप, जप और पूजन
- तीसरा दिन: पिंड अर्पण
विशेष रूप से दही और चावल से बने तीन पिंड तैयार किए जाते हैं और भगवान जनार्दन को अर्पित किए जाते हैं। खास बात यह है कि इन पिंडों में तिल का प्रयोग नहीं किया जाता। इस दौरान वायु पुराण और गरुड़ पुराण में वर्णित श्लोकों का जाप भी किया जाता है।
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पौराणिक और धार्मिक महत्व
स्थानीय पुजारियों के अनुसार, जनार्दन मंदिर का महत्व गरुड़ पुराण और वायु पुराण में स्पष्ट रूप से बताया गया है। राजा मान सिंह ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था, जिसके बाद से यहां हर साल पितृपक्ष के दौरान बड़ी संख्या में लोग जुटते हैं। साधु-संत और वैरागी यहां विशेष रूप से आत्मश्राद्ध की अनोखी परंपरा निभाते हैं।
क्यों अद्वितीय है यह स्थल?
भारत में कहीं और ऐसा स्थान नहीं है जहां जीवित व्यक्ति खुद के लिए पिंडदान कर सके। यही कारण है कि गया जी का यह मंदिर पूरे देश में धार्मिक दृष्टि से अद्वितीय और दुर्लभ माना जाता है। इस मंदिर में हर साल हजारों-लाखों की संख्या में लोग खुद पिंडदान करने आते हैं।

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