हिंदी पत्रकारिता के संवर्धन में प्रौद्योगिकी की भूमिका विषय पर वेब संगोष्ठी का आयोजन

हिन्दी पत्रकारिता

मोतिहारी। महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, मोतिहारी के मीडिया अध्ययन विभाग द्वारा ‘हिंदी पत्रकारिता के संवर्धन में प्रौद्योगिकी की भूमिका’ विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन शुक्रवार, 29 मई को किया गया। राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर संजीव कुमार शर्मा ने सभी वक्ताओं का आभार प्रकट करते हुए अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि मीडिया अध्ययन विभाग द्वारा आयोजित यह कार्यक्रम वर्तमान समय में प्रशंसनीय है।

महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर संजीव कुमार शर्मा ने कहा कि हिंदी पत्रकारिता के संवर्धन में प्रौद्योगिकी की भूमिका पर चिंतन हो रहा है जो अच्छी बात है। वेब संगोष्ठी के समस्त वक्तागण सैद्धांतिक पक्षों के साथ-साथ व्यावहारिक पक्षों के भी जानकार हैं। जिसमें देश के कोने कोने से सैकड़ों लोग जुड़े हैं। कोरोनाकाल का सकारात्मक पक्ष भी यही है कि हम संचार प्रौद्योगिकी के कारण विचार विमर्श करना शुरू कर दिए हैं।

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प्रो. शर्मा ने कहा कि पत्रकारिता में गंभीरता का होना महत्वपूर्ण है। गंभीरता के साथ-साथ उत्तरदायित्व बोध पर भी चिंतन करने की आवश्यकता है। पत्रकारिता से व्यवस्था में संतुलन बनाने की भी आवश्यकता है। उन्होंने पत्रकारिता के विद्यार्थियों एवं शोधार्थियों से कहा कि पत्रकारिता में तकनीक की जानकारी के साथ-साथ भाषा शैली पर भी ध्यान देने की जरूरत है। तकनीक ने पत्रकारिता के मूल भाषा को बदल दिया है। पत्रकारिता में भाषा का संस्कार अनुकरणीय होता है। पत्रकारिता करते समय पत्रकार में सतर्कता और उत्तरदायित्व बोध भी हो।

वेब संगोष्ठी में मुख्य अतिथि के तौर पर माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल के पूर्व कुलपति अच्युतानंद मिश्र ने कहा कि हिंदी पत्रकारिता दिवस के पूर्व संध्या पर आयोजित इस संगोष्ठी का विषय सामयिक है। टेक्नोलॉजी ने पूरे विश्व को अपने दायरे में ले लिया है। संचार क्रांति ने पत्रकारिता को पूरी तरह से प्रभावित किया है। उन्होंने सभी प्रतिभागियों से पुराने जमाने के पत्रकारिता के अनुभव को साझा करते हुए कहा कि पहले का दौर कलम का था, कैमरे का था और टाइपराइटर का था, और धीरे-धीरे संचार प्रौद्योगिकी ने सभी को पीछे छोड़ दिया है।

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शुरुआत में हिंदी पत्रकारिता ने आम आदमी को जोड़ दिया था। स्वाधीनता के बाद हिंदी पत्रकारिता के स्वर्णिम इतिहास में गिरावट भी आने लगी थी। लेकिन संचार क्रांति ने इसे फिर से जोड़ने का काम किया। साथ ही इसके स्वरूप को भी परिवर्तित किया है। संचार तकनीक क्रांति के कारण वर्तमान पत्रकारिता में संपादक का महत्व घट गया है और प्रकाशन का महत्व बढ़ गया। पूंजी और टेक्नोलॉजी ने पूरी तरह से पत्रकारिता को बदल दिया है।

हिंदी पत्रकारिता
हिंदी पत्रकारिता पर महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, बिहार में संगोष्ठी का आयोजन

पहले पत्रकारिता में गांव, गरीब, किसान की भी बात होती थी लेकिन अब गिरावट हुई है। तकनीक ने सिनेमा को भी प्रभावित किया। हिंदी पत्रकारिता में तकनीक के प्रभाव पर शोध नहीं हो रहा है। पत्रकारिता के पुराने विश्वसनीय गौरव को कैसे लौटाया जाए इस पर शोध की आवश्यकता है। उन्होंने विश्वविद्यालय व शोधार्थियों से कहा कि हिंदी पत्रकारिता के स्वर्णिम इतिहास में गिरावट की वजह पर भी शोध करें। आज पत्रकारिता के गिरावट को लेकर भारतीय मीडिया में भी चर्चाएं नहीं होती है।

संगोष्ठी में विशिष्ट अतिथि के तौर पर हिंदुस्तान, लखनऊ के कार्यकारी संपादक तीरविजय सिंह ने व्यावहारिक पक्षों पर बात करते हुए कहा कि प्रौद्योगिकी के कारण ही आज बिना प्रशिक्षण के भी लोग पत्रकार बने हुए हैं, यह अच्छी बात है। तकनीक के कारण विभिन्न सॉफ्टवेयर एवं ऐप के कारण वर्तनी का भी स्वत: सुधार हो रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों के संवाददाता भी खबर को बोलकर टेक्स्ट के माध्यम से भेज रहे हैं।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के माध्यम से भी भाषा शैली में सुधार हो रहा है और सूचना का तेजी से प्रसार हो रहा है। आगे उन्होंने यंत्र, मंत्र और तंत्र तीनों शब्दों को प्रौद्योगिकी के संदर्भ में समझाते हुए कहा कि मोबाइल एक यंत्र समान है, पत्रकारिता के लिए तथ्यों का संकलन विश्वसनीयता की परख और जानकारी मंत्र समान है तथा यंत्र और मंत्र को जोड़कर जो प्रक्रिया बनती है वो तंत्र है। हिन्दी पत्रकारिता ने तकनीकी को बड़ी शिद्दत से अपनाया है और आम व्यक्ति तक पहुंचाया है। ई-संस्करण, वेब पोर्टल, ब्लॉग जैसे कई उदाहरण हैं।

वेब संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के तौर पर लोकसभा टीवी, दिल्ली के संपादक श्यामकिशोर सहाय ने कहा कि आज तकनीक से सभी का परिचय है। हिंदी पत्रकारिता को तकनीक ने बहुत बल दिया है। उन्होंने हिंदी पत्रकारिता में तकनीक के कारण हुए बदलाव को रेखांकित करते हुए पांच बिंदुओं पर चर्चा किए। उन्होंने कहा कि प्रसार, प्रमाणिकता, पारदर्शिता, विश्लेषण और शोध ने पत्रकारिता के स्वरूप को बदला है।

पत्रकारिता के प्रसार को बढ़ाने में तकनीक का अहम योगदान है। तकनीक से प्रमाणिकता की भी जांच हो जाती है। तकनीक से पारदर्शिता भी आई है साथ ही तथ्यों के विश्लेषण और शोध में भी तकनीक अहम योगदान है। आगे उन्होंने कहा कि तकनीक ने पत्रकारिता के साथ-साथ समाज को भी बदला है। तकनीक के कारण पत्रकारिता अगंभीर भी हुई है, जो चिंता का विषय है। आज के दौर में पत्रकारिता इंटरैक्टिव हो गया है, यह इंटरेक्शन भी तकनीक के कारण ही संभव हुआ है।

वेब संगोष्ठी में विषय प्रवर्तन कर रहे मीडिया अध्ययन विभाग के अध्यक्ष एवं अधिष्ठाता प्रो. अरुण कुमार भगत ने सभी प्रतिभागियों एवं वक्ताओं का स्वागत करते हुए कहा कि आज का मंच विद्वानों से सुशोभित हो रहा है। यह संगोष्ठी हिंदी पत्रकारिता दिवस के अवसर पर चर्चा के लिए आयोजित किया गया है। आगे उन्होंने कहा कि हिंदी पत्रकारिता की शुरुआत पंडित जुगल किशोर शुक्ल के संपादन में 30 मई 1826 को हुई थी। तकनीक के कारण हिंदी पत्रकारिता में समाचार संकलन, संपादन, मुद्रण, लेआउट डिजाइनिंग में परिवर्तन होता रहा।

पहले समाचार संकलन के लिए संवाददाता को भेजा जाता था, निजी वाहन भी भेजे जाते थे। डाक द्वारा भी सूचनाएं भेजी जाती थी लेकिन आज व्हाट्सएप के जरिए भी संभव हो गया है। तकनीक से संपादन का विकास हुआ है, संपादन आसान हो गया। नई तकनीक के माध्यम से आज दिल्ली में बैठे संपादक भी ई-संस्करण के जरिए अन्य जगहों के समाचार का संकलन व संपादन कर सकते हैं। प्रौद्योगिकी ने पत्रकारिता को उल्लेखनीय बना दिया है। प्रस्तुतीकरण आकर्षक हो गया है। तकनीक के कारण ही आज अखबारों में ज्यादा से ज्यादा समाचार को जगह दिया जाने लगा है।

राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी के संचालन एवं संयोजक मीडिया अध्ययन विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉक्टर अंजनी कुमार झा थे। सह-संयोजक एवं धन्यवाद ज्ञापन मीडिया अध्ययन विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. साकेत रमण ने किया। संगोष्ठी में देश भर से लगभग 20 राज्यों से 200 से अधिक मीडिया जगत के अकादमिक एवं पेशवर विद्वान, शोधार्थी एवं विद्यार्थी जुड़े हुए थे। संगोष्ठी में विश्वविद्यालय के मीडिया अध्ययन विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ प्रशांत कुमार, असिस्टेंट प्रोफेसर डॉक्टर परमात्मा कुमार मिश्र, डॉ सुनील दीपक घोडके, डॉ उमा यादव एवं अन्य विभागों के प्राध्यापक, शोधार्थी व विद्यार्थी उपस्थित रहें।


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