नई दिल्ली। 1971 के भारत-पाक युद्ध के नायक रहे सैम मानेकशॉ का आज 3 अप्रैल को 104वीं जयंती है। 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध में मानेकशॉ भारत की जीत के हीरो रहे थे। वह फील्ड मार्शल के 5 स्टार रैंक के रुतबे को हासिल करने वाले पहले सैन्य अफसर थे। देश के महानतम कमांडरों में से एक सैम मानेकशॉ का पूरा नाम सैम होरमुसजी फ्रामजी जमशेदजी मानेकशॉ है। 3 अप्रैल, 1914 को जन्मे मानेकशॉ को लोग सम्मान में ‘सैम बहादुर’ भी कहते थे। वह भारतीय सेना के 8वें आर्मी चीफ भी रह चुके हैं।
सैम मानेकशॉ का जन्म एक पारसी परिवार में हुआ था। उनका जन्म वर्तमान भारत में स्थित अमृतसर में हुआ था। शुरुआत में उनके पिता ये पसंद नहीं था कि सैम आर्मी को ज्वाइन करे। इस पर सैम ने पिता से कहा कि फिर उनको गायनोकोलॉजिस्ट बनने के लिए लंदन भेज देना चाहिए। लेकिन सैम के पिता ऐसा करने से भी इंकार कर दिया। बाद में सैम ने पिता की इच्छा के विपरित 1932 में इंडियन मिलिट्री एकेडमी की परीक्षा पासकर सैन्य अफसर बन गए।
सैन्य अफसर बनने के बाद अपने चार दशकों के मिलिट्री करियर में सैम ने 5 युद्धों में हिस्सा लिया। 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध से पहले जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने मानेकशॉ से सैन्य तैयारियों के बारे में पूछा तो उन्होंने जवाब दिया, ”मैं हमेशा तैयार हूं स्वीटी।”
बताया जाता है कि मानेकशॉ एक बार बर्मा में जपानी सेना के हमले में बहुत घायल हो गए थे। 1942 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जब वह कैप्टन थे और जापानियों के खिलाफ बर्मा में लड़ रहे थे तो उनके शरीर में दुश्मन की नौ गोलियां लगीं। लेकिन फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी।
बाद में ऊपर से आदेश आया कि घायलों को उसी अवस्था में छोड़ दिया जाय। क्योंकि यदि घायलों को वापस लाया गया तो वापस पीछे जा रही सेना की गति धीमी पड़ सकती है। लेकिन उसी वक्त सूबेदार शेर सिंह ने किसी तरह से उन्हें वहां से वापस लाया और उनकी जान बचा ली।
सैम के कुछ कोट भी बहुत प्रसिद्ध हुए। उन्होंने एक बार कहा था कि ”यदि कोई आदमी कहता है कि उसको मौत से डर नहीं लगता, तो वह या तो झूठ बोल रहा है या वह गोरखा है।” इसी तरह से जब उनके एक बार पूछा गया कि यदि आप विभाजन के बाद पाकिस्तान चले जाते तो क्या होता तो उनका जवाब था, ”तो सभी युद्ध पाकिस्तान जीतता।”
बाद में सैम मानेकशॉ की सेवा में 1972 में राष्ट्रपति के विशेष ऑर्डर से छह माह के लिए बढ़ा दिया गया था। हालांकि सैम इसके लिए इच्छुक नहीं थे लेकिन राष्ट्रपति के सम्मान में उन्होंने अपनी सेवाएं जारी रखीं। 1942 में उनको मिलिट्री क्रॉस, 1968 में पद्म भूषण और 1972 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। 2008 में जब उनका वेलिंगटन के सैन्य अस्पताल में न्यूमोनिया की वजह से निधन हुआ था तो उनसे मिलने कोई राजनेता नहीं आया और न ही उनके निधन पर शोक दिवस घोषित किया गया।
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