विश्व जल दिवस- पानी की महत्ता उतनी ही है जितनी हमारी सांसों की है…
पृथ्वी पर एक प्रतिशत पानी ही आसानी से उपलब्ध है, उसमें से भी 70% पानी पीने योग्य नहीं है, इसमें केवल .03 प्रतिशत पानी ही पेयजल के रूप में उपयोग में लाया जा सकता है।
एक समय था जब भारत की गोद में हज़ारों नदियां बहती थी, लेकिन अब हज़ारों नदियों में से अधिकतर विलुप्त हो गई हैं या फिर उनका जलस्तर घट चुका है। नदियों और उनके भीतर रहने वाले जीवों की दुर्दशा का कारण हम मनुष्य ही है। मानवीय इच्छाओं और दोहन की वजह से भूजलस्तर खत्म होने की कगार पर है।
जंगलों-पहाड़ियों को काटा जा रहा है, जिसकी वजह से पर्यावरण संतुलन बिगड़ता चला जा रहा है। नदियों में रासायनिक कचरा इतना फेंका गया कि उसमें रहने वाले जीव भी विलुप्त होने लगे। वर्षा जलसंग्रहण की तकनीको में कहीं न कहीं कमियां रही हैं, जिसपर ध्यान देकर सरकार इसे बेहतर कर सकती है।
गांव-देहात में कुएं और तालाब अब न के बराबर ही नज़र आते हैं क्योंकि उनका स्थान ट्यूबवेल ने ले लिया। टट्यूबवेल के ज़रिए खेतों में पानी दिया जा रहा है। लगातार भू-जल का दोहन होने से भू-जलस्तर तेज़ी से गिर रहा है और हैंडपंपों में पानी की मात्रा कम हो गई है।
आज के इंसान के लिए आर्टिफिशियल लाइफस्टाइल महत्वपूर्ण होने लगा है, लेकिन कहीं न कहीं हम सभी इस वहम में जी रहे हैं। हम भूल रहे हैं कि प्राकृतिक संसाधन जो कि हमें प्रकृति ने भेंट स्वरूप दिए हैं, उन्हें संजोए रखने के लिए हमारी महत्वपूर्ण भूमिका होनी चाहिए। प्राकृतिक संसाधनों का हमारे जीवन में अतुलनीय योगदान होता है। तो फिर जल जैसे प्राकृतिक संसाधन के संरक्षण की ज़िम्मेदारी भी हमें उठानी ही चाहिए।
सरकार कड़े नियम बनाएं जिससे जल का संरक्षण अधिक हो सके और जल का दोहन कम हो, साथ ही हमारी नदियां स्वच्छ व निर्मल हों…
विश्व जल दिवस- पानी की महत्ता उतनी ही है जितनी हमारी सांसों की है…
“हमें पानी की हर बूंद को बचाना है”
✍ “सपना”
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