नई दिल्ली। दिल्ली के नॉर्थ ईस्ट में हुई हिंसा में लगभग 46 जानें गईं और लगभग 350 लोग घायल हुए। दिल्ली हिंसा में कुछ शव नालें में भी पाए गए, नार्थ ईस्ट दिल्ली हिंसा मामले में अब तक दिल्ली पुलिस ने 334 एफआईआर दर्ज की है। इस मामले में 33 लोगों को भी गिरफ्तार किया गया है। दिल्ली हिंसा के बाद अपने ज़ख्म भरने की कोशिश कर ही रही थी कि रविवार रात अफवाहों ने ज़ोर पकड़ लिया जिसके चलते ओखला क्षेत्र में लगभग 2 व्यक्तियों की हार्ट अटैक से मृत्यु हो गई।
आपको बता दें कि सीएए और एनआरसी के विरोध में दिल्ली के शाहीन बाग़ में 70 दिनों से धरना-प्रदर्शन चल रहा था। बाद में यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया। सड़क जाम की वजह से नोएडा आने-जाने वाले लोगों के लिए शाहीन बाग़ परेशानी का कारण भी बना। जब शाहीन बाग से नोएडा जाने वाली सड़क को प्रदर्शनकारियों ने खाली किया तो उसके बाद ही जाफराबाद में महिलाएं देर रात प्रदर्शन के लिए सड़कों पर आ गईं।
अगले कुछ दिनों में नागरिक संशोधन कानून के सर्मथकों और विरोधियों के बीच पथराव की स्थिति बन गई। कपिल मिश्रा के सड़क खाली करवाने वाले विवादित बयान के बाद दिल्ली के नॉर्थ ईस्ट में तनाव की स्थिति बन गई, दंगाईयो ने पूरे नॉर्थ ईस्ट में हिंसा की।
- अब सवाल यह है कि देश की राजधानी में इतनी बड़ी घटना कैसे हो गई ?
- इंटेलिजेंस विभाग को दंगाइयों की इस हरकत की पूर्व सूचना कैसे नहीं मिली ?
- पुलिस बल की राजधानी में कमी कैसे दिखी ?
- इतनी ज़्यादा संख्या में बंदूकें और हथियार कैसे दिल्ली तक पहुंच गए ?
- ग्रह मंत्री अमित शाह ने दिल्ली हिंसा को रोकने की जिम्मेदारी में देरी क्यों बरती ?
एक तरफ दिल्ली में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का आगमन दूसरी तरफ दिल्ली में हिंसा यह दोनों स्थिति विपक्ष पर भी सवाल खड़े करती है। हिंसा करते हुए कुछ नौजवानों को भी देखा गया, अगर देश में रोज़गार की स्थिति अच्छी होती तो क्या फिर भी उन नौजवानों के हाथों में पत्थर होते ?
ऐसे और भी सवाल हैं तो सिस्टम और सरकार पर सवालिया निशान लगाते हैं।
- अरविंद केजरीवाल की लाचारी ने क्या दिल्ली वासियों को निराश किया होगा ?
- कानून कपिल मिश्रा और ताहिर हुसैन दोनों पर सख्त कार्यवाही करेगी ?
- हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे ने कई जानें भी बचाईं तो ये कौन तत्त्व है जो देश में अमन के विरोधी हैं ?
- राजधानी में तमंचे हवा में लहरा कर फायरिंग होना यह सरकार और प्रशासन को सामान्य क्यों लगने लगा ?
- मुआवज़े ज़रूरत तो पूरी कर देंगे क्या किसी घर का चिराग ला पाएंगे ?
- जस्टिस मुरलीधर के तबादले की ऐसी क्या जल्दी आन पड़ी थी ?
इन सभी सवालों के बीच दिल्ली अपने दर्द से उभरने की कोशिशें कर रही है, लेकिन यह गौर करने की बात है कि आखिर हमारा नज़रिया क्या है ? क्यों दिल्ली में इंसानियत शर्मसार हुई?
हम सभी को यह समझना जरूरी है और अफवाहों से बचकर रहना है। अगर न्याय की आवाज़ उठाओ तो हर पीड़ित के लिए, सज़ा की मांग करो तो हर गुनहगार के लिए, तकलीफ़ महसूस करो तो हर बिलखते आंसू के लिए, साथ खड़े हों तो केवल इंसानियत के लिए, तथ्यों की जांच करो तो हर पक्ष के लिए।
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