चीन में कोरोना वायरस
भले ही देर से सही, भारत सरकार ने चीन में कोरोना वायरस फैलने के बाद उत्पन्न आर्थिक चुनौतियों के मुकाबले के लिये कमर कसी है। दरअसल, चीन में कोरोना वायरस के भयावह असर के बाद तमाम आर्थिक गतिविधियां ठप पड़ी हैं। जिसका असर भारत को होने वाले निर्यात पर पड़ना स्वाभाविक है। यही वजह है कि भारतीय उद्योग परिसंघ यानी सीआईआई ने वित्त तथा विदेश मंत्रालय से मांग की थी कि लगातार विकट होते हालात में तुरंत कदम उठाये जाएं।
दरअसल, जीवन रक्षक दवाओं से लेकर तमाम आवश्यक सामान को लेकर भारत चीन पर पूरी तरह निर्भर है। वर्ष 2018-19 में दोनों देशों के बीच सत्तर अरब डॉलर का कारोबार हुआ था। नि:संदेह आज चीन भारत के लिये व्यापारिक वस्तुओं का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है। यद्यपि सरकार चीन से आने वाले सामान के विकल्प तलाश रही है, लेकिन इन कदमों के अपने नुकसान हैं, अन्य देशों से आने वाले महंगे सामान से महंगाई बढ़ने का खतरा बराबर बना हुआ है।
इस चुनौती से मुकाबले के लिये वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने विभिन्न विभागों के सचिवों व विभिन्न उद्योगों के प्रतिनिधियों के साथ बातचीत की है। इसका मकसद मौजूदा चुनौती से मुकाबले के लिये उठाये जाने वाले तात्कालिक कदमों पर चर्चा करना था। दरअसल, मौजूदा हालात में कई तरह की चुनौतियां न केवल कारोबार के स्तर पर उत्पन्न हुई हैं, बल्कि उपभोक्ताओं के लिये जीवन रक्षक दवाओं का संकट पैदा होने का खतरा बना हुआ है। यही वजह है कि सरकार फार्मा, स्वास्थ्य तथा सर्जिकल उपकरणों की कमी से चिंतित है।
दरअसल, एक ओर चीन से कच्चे माल की आपूर्ति नहीं हो रही है, दूसरे चीनी अधिकारियों द्वारा बंदरगाहों पर फंसे सामान को क्लियर नहीं किया जा रहा है। चीनी अधिकारी कोरोना वायरस की चुनौती से निपटने में लगे हैं। इससे दोहरा संकट उत्पन्न हुआ है। यही वजह है कि सरकार उन फौरी कदमों को उठाने की तैयारी में है, जिनसे किसी बड़े संकट को टाला जा सके। इसके अंतर्गत बंदरगाहों में फंसे सामान की मंजूरी में तेजी लाने के निर्देश दिये गये हैं। कर्मचारियों को चौबीस घंटे काम पर लगाने को कहा गया है।
चेन्नई बंदरगाह में सामान को क्लियर करने की जो छूट दी गई है, उसे सभी बंदरगाहों पर लागू करने पर विचार किया जा रहा है। दूसरा संकट भारतीय निर्यातकों का भी है। इसमें समुद्री खाद्य पदार्थ भी शामिल हैं, जिनका बड़ा हिस्सा चीन व दक्षिण पूर्व एशिया के देशों को निर्यात किया जाता है। लेकिन सबसे बड़ा संकट फार्मा तथा रसायन से जुड़े उद्योगों का है। कच्चे माल की आपूर्ति न होने से ये उद्योग ठप पड़ने की स्थिति में हैं। ऐसे में सरकार छूट देने के उन उपायों पर भी विचार कर रही है जो प्राकृतिक आपदा और असामान्य परिस्थितियों में संबंधित पक्षों को राहत देने के लिये किये जाते हैं।
ऐसे में सरकार जरूरत को देखते हुए दवा निर्माण से जुड़े कच्चे माल को हवाई मार्ग से भी जरूरत के मुताबिक आयात कर सकती है। इसमें सीमा शुल्क में भी छूट दी जा सकती है। कुछ उद्योग प्रतिनिधियों का तो यहां तक कहना है कि पिछले दिनों चीनी उत्पादों पर जो शुल्क बढ़ाया गया था, उसे कम किया जाये। इससे देश में महंगाई बढ़ने के आसार हैं।
बहरहाल, ऐसे वक्त में जब चीन में कोरोना वायरस पर नियंत्रण और उससे उपजे हालात पर काबू पाने में वक्त लग सकता है तो सरकार को स्वदेशी उत्पादों को प्राथमिकता देने के लिये राहत उपायों की घोषणा करनी चाहिए। निश्चित तौर पर इससे लागत में वृद्धि होगी, देश में रोजगार के अवसर बढ़ेंगे मगर भविष्य में ऐसे हालातों का हम आत्मनिर्भरता से मुकाबला कर सकते हैं। उद्योगपतियों का मानना है कि स्वदेशी उद्यमों को संबल देने के लिये एनपीए नियमन के लिये कुछ समय के लिये छूट दी जाये। इससे आपूर्ति शृंखला में उत्पन्न व्यवधान को दूर किया जा सकेगा।
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