श्रम कानूनों में बदलाव मजदूरों का गला घोंटने के समान

श्रम कानूनों में बदलाव

देश के कई राज्य सरकारों ने श्रम कानूनों में बदलाव कर दिया है। कोरोना बिमारी से उद्योगों के बर्बाद होने के नाम पर मजदूरों से उसका हक छीन लिया गया। पहले से ही दबे-कुचले मजदूर को अब और रौंदने की तैयारी कर ली गई है। श्रम कानूनों में यह बदलाव भारत में मजदूरों दयनीय स्थिति को और बढ़ाएगा।

Join whatsapp group Join Now
Join Telegram group Join Now

भाजपा शासित उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और गुजरात में श्रम्र कानूनों को लगभग समाप्त कर दिया गया है। वहीं कांग्रेस शासित पंजाब में पहले मिनिमम पेय जो बढ़ाया गया था, उसे वापस ले लिया गया। इन राज्य सरकारों का यह कदम भविष्य में मजदूरों की जिंदगी और भारतीय मजदूरों की दयनीयता को और बढ़ाएगा।

इन राज्यों में कानून का इस तरह से सफाया मजदूरों का बहुत ज्यादा शोषण का कारण बनेगा। पहले से ही उद्योगपतियों के शोषण का शिकार मजदूर अब और अधिक शोषण का शिकार बनेगें। इससे उद्योग क्षेत्र में अराजकता माहौल उत्पन्न होगा और मजदूरों में उदासीनता बढ़ेगी। उद्योगिक क्षेत्रों में मजदूरों का अधिकार निलंबित होने से उनसे जानवरों से भी बदत्तर तरीके से काम लिया गया।

बड़े, मंझौले, छोटे उद्योगपति सभी मजदूरों का शोषण करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। राज्य सरकारों का यह कदम मजदूरों की बेबेसी में और इजाफा करेगा। ये लोग शोषण का शिकार होने पर अपनी आवाज भी बुलंद नहीं कर पाएगा। शोषण के खिलाफ आवाज उठाने के सारे रास्ते भी बंद कर दिये गए हैं।

भारत का श्रम कानून – देश में इस वक्त मुख्य रूप से 4 श्रम कानून हैं

1. न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948
2. मजदूरी अधिनियम 1936
3. बोनस अधिनियम 1965
4. निर्वाह पारिश्रमिक अधिनियम 1976

भारत में श्रम कानून समवर्ती सूची में है। इस कारण देश में 40 केंद्रीय श्रम कानून और लगभग 100 राज्य श्रम कानून हैं। इन श्रम कानूनों के जरिए श्रमिकों के कल्याण से संबंधित बिषय को नियंत्रित किया जाता है। अब राज्य सरकारों द्वारा इन्हीं श्रम कानूनों पर कुटाराघात किया गया है। राज्य सरकारों द्वारा श्रम कानूनों पर चलाया गया हथौड़ा श्रमिकों के कल्याण की चिंता को और बढ़ाएगा।

हाल के दिनों में उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, पंजाब, उड़ीसा में श्रम कानूनों में बदलाव या लगभग सस्पेंड किया गया है। देश के बड़े राज्यों उत्तर प्रदेश, गुजरात और मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में तो श्रम कानून को लगभग समाप्त ही कर दिया गया है। कोरोना में उद्योग के तबाह होने के नाम पर श्रमिकों के साथ धोखा नहीं किया जा सकता।

जिस सरकार पर देश के नागरिकों, श्रमिकों की रक्षा का भार है वे ही उनके अधिकारों को रौंदने में लगी है। शासन सत्ता का यह रवैया उस सेठ की तरह है जो काम भी लेता है और बदले में गाली भी देता है। इस तरह से बदलाव कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ भेदभाव और शोषण को और बढ़ाएगा। पहले से मजबूर महिला श्रमिकों के शोषण का रास्ता इन श्रम कानून में बदलाव से और आसान होगा। भले ही देश की सरकारें इस बात को स्वीकार न करे लेकिन सच्चाई यही है।

✍ ‘संतोष कुमार’

Join whatsapp group Join Now
Join Telegram group Join Now

Follow us on Google News

देश और दुनिया की ताजा खबरों के लिए बने रहें हमारे साथ। लेटेस्ट न्यूज के लिए हन्ट आई न्यूज के होमपेज पर जाएं। आप हमें फेसबुक, पर फॉलो और यूट्यूब पर सब्सक्राइब कर सकते हैं।


Follow WhatsApp Channel Follow Now