अमेरिका की चुनावी प्रक्रिया भारत से कितना अलग है? आसान शब्दों में जानिए

अमेरिका की चुनावी प्रक्रिया

अमेरिका की चुनावी प्रक्रिया भारत से कितना अलग है? कैसे होता है अमेरिका में चुनाव? अमेरिका दुनिया का सबसे ताकतवर देश है। ऐसे में अमेरिका और उसपर राज करने वाला व्यक्ति दुनिया में सबसे ताकतवर माना जाता है। इसी साल 3 नवंबर को दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव है। ऐसे में अमेरिका का राष्ट्रपति कौन बनता है, इसपर पूरी दुनिया के लोगों की नजर बनी हुई है। तो आइए जानते हैं कि भारत से कितना अलग है अमेरिका की चुनावी प्रक्रिया?

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भारत की तरह ही अमेरिका भी एक लोकतांत्रिक देश है। इसलिए अमेरिका में भी वोटिंग प्रक्रिया और उसके पहले चुनाव प्रचार के अलग-अलग नियम हैं। लेकिन अमेरिका की चुनावी प्रक्रिया भारत से थोड़ी लंबी और कठिन है। ऐसे में अमेरिका में चुनाव किस तरह होते हैं, वहां की प्रणाली क्या है? और एक अमेरिकी व्यक्ति अपने राष्ट्रपति को किस तरह चुनता है? इसके लिए ये आर्टिकल अंत तक पढ़ें और सबकुछ आसान शब्दों में समझें।

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव लड़ने के लिए क्या है जरूरी?

अगर अमेरिकी संविधान की मानें तो संविधान के आर्टिकल दो के सेक्शन एक में वहां के राष्ट्रपति चुनाव की जानकारी विस्तृत रूप से दी गई है। इस संविधान में प्रमुख तीन बातों पर ध्यान दिया गया है। जिसके तहत अगर कोई व्यक्ति अमेरिका का राष्ट्रपति बनना चाहता है तो इन तीन चरणों से होकर उसे गुजरना पड़ता है। जोकि इस प्रकार से है।

  1. अमेरिका में चुनाव लड़ने वाला व्यक्ति पैदाइशी अमेरिकी होना चाहिए।
  2. व्यक्ति की उम्र कम से कम 35 वर्ष होनी चाहिए।
  3. इसके आलावा चुनाव लड़ने वाला व्यक्ति कम से कम 14 साल अमेरिका में रहा होना चाहिए।

इस प्रकार होती है अमेरिका में चुनावी प्रक्रिया

अमेरिका में केवल दो पार्टी का सिस्टम है जो कि वहां पर सबसे बड़ी पार्टी मानी जाती है। इन पार्टियों में पहली पार्टी है रिपब्लिकन और दूसरी डेमोक्रेट्स पार्टी। इन दोनों पार्टियों को अपनी-अपनी तरफ से किसी एक व्यक्ति को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाना होता है। इसके बाद अमेरिका की जनता उसे वोट देती है। लेकिन यहां पर उम्मीदवार को चुनने से पहले भी एक लंबी प्रक्रिया है, क्योंकि राष्ट्रपति तो हर कोई बनना चाहता है। चूंकि बात दूनिया के सबसे बड़े देश के राष्ट्रपति का है तो इसके लिए कोई उम्मीदवार कैसे बनेगा, इसका चयन भी जनता या पार्टी के समर्थक करते हैं। तो आइए जानते हैं इसके आगे की प्रक्रिया।

क्या होता है प्राइमरी और कॉकसस?

अमेरिका में पार्टी का उम्मीदवार तय करने के लिए दो तरह से चुनाव किए जाते हैं। पहला प्राइमरी और दूसरा कॉकसस। इसमें पार्टी का कोई भी कार्यकर्ता राष्ट्रपति पद के चुनाव के लिए खड़ा हो सकता है। उसे सिर्फ अपने समर्थकों का साथ चाहिए होता है।

प्राइमरी सिस्टम:

ऐसे में अगर प्राइमरी सिस्टम की बात करें तो यह राज्य सरकारों के अंतर्गत कराए जाते हैं, जोकि खुले और बंद रूप से भी कराए जा सकते हैं। यानी अगर राज्य सरकार चुनती है कि खुले रूप से चुनाव करेगी तो उसमें पार्टी के समर्थकों के साथ-साथ आम जनता भी मतदान कर सकती है। वहीं अगर बंद रूप से मतदान होता है तो सिर्फ पार्टी से जुड़े समर्थक ही उम्मीदवार के लिए वोटिंग करते हैं।

कॉकसस सिस्टम:

अब अगर बात कॉकसस सिस्टम की करें तो यह चुनाव पार्टी की तरफ से ही कराए जाते हैं। इस प्रक्रिया में पार्टी के समर्थक एक जगह इकट्ठे होते हैं और अलग-अलग मुद्दों पर चर्चा करते हैं। इसमें राष्ट्रपति उम्मीदवार के लिए खड़े हो रहे व्यक्ति की बात सुनते हैं। उसके बाद उसी सभा में हाथ खड़े कर एक उम्मीदवार को समर्थन दे दिया जाता है। लेकिन ऐसा बहुत कम राज्य में होता है।

वहीं अमेरिका की चुनावी प्रक्रिया में एक पेच यह भी है कि वहां पर एक वोटर को चुनाव से पहले कुछ समय के लिए एक पार्टी के लिए रजिस्टर करना पड़ता है। तभी वह इस तरह के प्राइमरी या कॉकसस चुनावों में हिस्सा ले सकता है।

तो क्या है यह प्राइमरी और कॉकसस?

दरअसल अमेरिका में दोनों पार्टियों की तरफ से राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनने के लिए एक संख्या की जरूरत होती है। वह संख्या जो प्राइमरी और कॉकसस के चुनावों में जरूरी होता है। उदाहरण स्वरूप, अगर एक पार्टी की तरफ से 10 लोग राष्ट्रपति पद की रेस में है तो उन्हें हर राज्य में होने वाले प्राइमरी या कॉकसस चुनाव में सबसे अधिक डेलिगेट्स का समर्थन हासिल करना होता है।

इस साल के चुनाव में डेमोक्रेट्स के कुल डेलिगेट्स की संख्या 3979 है और जीतने के लिए 1991 की जरूरत है। रिपब्लिकन के कुल डेलिगेट्स की संख्या 2550 है और उम्मीदवार बनने के लिए 1276 की जरूरत है।

कैसे चुना जाता है नेशनल कन्वेंशन और उप राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार?

एक बार जब प्राइमरी इलेक्शन खत्म हो जाता है तो यह तस्वीर साफ हो जाती है कि दोनों पार्टियों की तरफ से राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार कौन बनेगा। लेकिन इसका आधिकारिक ऐलान नेशनल कन्वेंशन में होता है। डेमोक्रेट्स का नेशनल कन्वेंशन हमेशा जुलाई में होता है और रिपब्लिकन पार्टी का अगस्त के महीने में होता है।

यहां पर भी पार्टी की सर्वोच्च टीम उम्मीदवार का ऐलान करती है। इसके बाद राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार अपने समर्थकों के सामने एक भाषण देते हुए उम्मीदवारी को स्वीकार करते हैं। फिर अपनी मर्जी से चुने हुए उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का ऐलान करता है। यहां से अमेरिका के राष्ट्रपति की चुनावी प्रक्रिया शुरू होती है। तब पार्टी की ओर से चुना गया राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार पूरे देश में प्रचार करने के लिए निकलता है।

क्या होता है राष्ट्रपति चुनाव और इलेक्टर?

अमेरिका में जनता हमेशा नवंबर के पहले सप्ताह में राष्ट्रपति पद के लिए मतदान करती है। ऐसे में यहां पर यह मतदान सीधे उम्मीदवार के लिए नहीं किया जाता है। अमेरिकी जनता सबसे पहले स्थानीय तौर पर एक इलेक्टर का चुनाव करती है। यह अमेरिकी राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का प्रतिनिधि होता है।

बता दें कि इसके समूह को इलेक्टोरल कॉलेज कहा जाता है। इसमें कुल 538 सदस्य होते हैं। ये सदस्य अमेरिका के अलग-अलग राज्यों से आते हैं। जनता सीधे तौर पर इन्हीं सदस्यों को चुनती है जो आगे जाकर राष्ट्रपति का चुनाव करते हैं। जब अमेरिकी जनता एक बार अपने इलेक्टर को वोट दे देती है, उसके बाद जनता का राष्ट्रपति पद के चुनाव में कोई हाथ नहीं रहता है। ऐसे में यह सिर्फ इलेक्टर पर निर्भर करता है कि वह किसे राष्ट्रपति बनाना चाहता है?

कितने इलेक्टर्स के समर्थन की होती है जरूरत?

अमेरिका में राष्ट्रपति बनने के लिए किसी भी उम्मीदवार को 270 से अधिक इलेक्टर्स के समर्थन की जरूरत होती है। जिसके पास 270 से अधिक का आंकड़ा होता है वह व्यक्ति 20 जनवरी को अमेरिका के राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति पद की शपथ लेता है।

अमेरिका में किस राज्य के पास है सबसे ज्यादा ताकत?

देखा जाए तो अमेरिका भी भारत की तरह कई राज्यों का एक देश है। भारत की तरह ही वहां पर हर राज्य के पास सीटों की अपनी एक ताकत है जो प्राइमरी और बाद में फाइनल चुनाव में अपना किरदार निभाती है। कुछ राज्य ऐसे हैं जो अकेले दम पर पूरा चुनाव ही बदल सकते हैं।

प्राइमरी चुनाव के हिसाब से अमेरिका में सबसे ताकतवर राज्य कैलिफोर्निया है। कैलिफोर्निया के पास 415 डेलीगेट्स हैं। इसके बाद टेक्सास 228 और फिर नॉर्थ कैरोलिना 110 के आंकड़े के साथ तीसरे नंबर पर है। जबकि भारत में यह ताकत उत्तर प्रदेश राज्य के पास है।

अमेरिकी चुनाव में सबसे ज्यादा फायदा होता है टीवी डिबेट से

भारत की तरह अमेरिका में भी चुनावी प्रचार के दौरान सभी उम्मीदवार अलग-अलग इलाके में जाकर रैलियाँ करते हैं। लेकिन यहाँ पर चुनाव में टीवी डिबेट का एक अलग ही महत्व माना जाता है। ऐसे में टीवी डिबेट्स ही वह असली मुद्दा है जिनके आधार पर अमेरिका में अधिकतर वोटर प्रभावित होते हैं। यह डिबेट्स भी दो तरह की होती है। पहली प्राइमरी लेवल की डिबेट। यह डिबेट पार्टी के कैंडिडेट के बीच में होती है। दूसरी प्रेसिडेंशियल डिबेट, जो दोनों पार्टी के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों के बीच में होती है। इस तरह से अमेरिका की चुनावी प्रक्रिया सम्पन्न होती है और अमेरिका का राष्ट्रपति चुना जाता है।

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